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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्थायी मित्रता कायम करनेमें भी आपकी देश-सेवा निहित है । इस तरह आप देखेंगे कि आपके लिए दोनों कर्त्तव्य एक हैं और यदि आप देशकी सेवा करना चाहते हैं तो आपको चाहिए कि आप जिस समाज में रहते हैं, उसकी भी सेवा करें ।

इस सबको समझ लेनेपर आप अपना ध्यान बाल-विवाह प्रथाकी घोर बुराइयोंकी ओर दें। इसको आप धर्म या शास्त्र सम्मत बात न कहें कि आप एक दुधमुँही बच्ची के साथ विवाह कर सकते हैं या कि आपके साथ उसका विवाह करके उसे आपकी धर्मपत्नी बनने को कहा जा सकता है। फिर भी मैं अपने ऐसे अनेक मित्रोंको जानता हूँ जो अच्छे वकील, डाक्टर और प्रबुद्ध व्यक्ति हैं लेकिन जिनका विवाह तेरह वर्षसे भी कम उम्रकी लड़कियोंसे हुआ । (हँसी) भाइयो, यह कोई हँसने की बात नहीं है, इसपर तो हमें लज्जा आनी चाहिए, हमारी आँखोंमें आँसू भर आने चाहिए। मैं आपसे सच कहता हूँ कि हमारे समाज में इससे ज्यादा बुरी बात और कोई नहीं है । आपको इसपर गम्भीरता से विचार करना चाहिए, इसे हँसीमें नहीं उड़ा देना चाहिए। हमारे नौजवानोंको निश्चय कर लेना चाहिए कि वे पन्द्रह वर्ष से कम आयुकी लड़कीसे विवाह नहीं करेंगे। इस सुधार कार्य में वास्तवमें इन्हीं लोगोंको सहायता करनी चाहिए। आप सबको, चाहे नौजवान हों या बूढ़े, इस कार्य में मदद करनी चाहिए।

आपने उस महान् पुरुष गंगारामका[१] नाम तो सुना ही होगा। इस महान् पुरुषने अपने इंजीनियरिंगके कौशलसे पंजाब में बड़े-बड़े काम किये हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह कि आपके महान् पुरुष सर विश्वेश्वरैयाने यहाँ मैसूरमें किये हैं। लेकिन उन्होंने इस सबसे बड़ा जो कार्य किया है, वह है विधवा-विवाह के क्षेत्रमें किया गया काम । इसी तरह आपको भी विधवा-विवाह के कार्य में योगदान देना चाहिए। लेकिन मैं आपसे पूछता हूँ, विधवा कौन है ? विधवाको हम लोग अत्यन्त सम्मानकी दृष्टिसे देखते हैं, लेकिन क्या आप १४-१५ वर्षकी लड़कीको सिर्फ इसीलिए विधवा कह सकते हैं कि उसने अपना पति खो दिया है? यदि किसी माता-पिताने गरीबी अथवा अन्य कारण- वश अपनी तेरह वर्षीय लड़कीका विवाह कर दिया है और उसके पतिकी तत्काल अथवा एक साल बाद मृत्यु हो जाती है तो क्या आप यह कह सकते हैं कि वह विधवा है और उसे बादका अपना सारा जीवन कष्टमें, दुःखमें व्यतीत करना है ? हमारा ध्यान दिन-ब-दिन इस प्रश्नकी ओर खिंचता जा रहा है और अब हम इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते और न इसके प्रति उदासीन रह सकते हैं। उसके इस कष्टको स्थायी मत बना दीजिए। जब आप पुरुषोंको पुनर्विवाह करनेका अधिकार प्राप्त है तब आप स्त्रियोंको इस अधिकारसे वंचित क्यों रखते हैं ? आपको यह समझना चाहिए कि आपको उन्हें यह अधिकार देना है और मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या आप यह कार्य करके अपने समाजकी सबसे सच्ची सेवा करेंगे ?

अन्त में एक बात और मैंने देखा है कि आपके संघ-जैसी संस्थाएँ अपनी गति- विधियोंको शहरोंतक ही सीमित रखती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। आपको शहरोंसे

  1. देखिए पृष्ठ २२७-२८ ।