पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५१
पत्र: मीराबहनको

बाहर जाकर गाँवों और पुरवोंके कल्याणके लिए भी काम करना चाहिए। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप इसे याद रखें । भगवान् आपके संघको, उसके पुनीत प्रयत्नोंको सफल बनाये ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, २५-७-१९२७

२०१. पत्र : मीराबहनको

२५ जुलाई, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारा लम्बा पत्र मिला लेकिन इसमें तुमने जितने विषयोंकी चर्चा की है, उनको देखते हुए इसे लम्बा नहीं कहा जा सकता ।

बिच्छुओंसे होशियार रहना । एक बर्तन में मिट्टी बराबर तैयार रखनी चाहिए और उसे अक्सर धूप दिखाते रहना चाहिए। अगर किसीको बिच्छू काट ले तो तुम्हें काफी मिट्टीका उपयोग करना चाहिए, और जब भी सम्भव हो तब, यदि काटे हुए स्थानपर घाव न हुआ हो तो, कपड़े आदिमें बाँधकर मिट्टीकी पट्टी लगाने के बजाय सीधे चमड़ीपर ही उसका लेप चढ़ा देना चाहिए। अगर दर्द न जाये तो घंटे, आधा घंटे बाद पट्टी या लेप बदलते रहना चाहिए ।

अब मासिक-धर्मके बारेमें। तुम्हें शायद मालूम होगा कि इस अवधि में आश्रम में स्त्रियाँ अलगाव नहीं बरततीं। लेकिन, मुझे नहीं मालूम कि ठीक-ठीक क्या करना चाहिए। इस मामलेमें वास्तवमें स्त्रियाँ ही सहायता कर सकती हैं। क्योंकि वे ही कह सकती हैं कि इस हालत में क्या चीजें जरूरी हैं। मुझे लगता है कि इस हालत में स्त्रियोंको अस्पृश्य माननेका कारण पुरुष द्वारा अपनी वासनापर नियन्त्रण रख पानेकी असमर्थता है। सिर्फ वासनाको तुष्ट करनेकी दृष्टिसे रजस्वला स्त्रीका स्पर्श वर्जित करनेसे शायद काम नहीं चला, लेकिन जब यह तय कर दिया गया कि स्त्रीका इस अवस्थामें किसी भी तरह से स्पर्श न किया जाये और यह एक धार्मिक नियम बन गया तब शायद पुरुष इस निषेधका पालन करने लगा । पता नहीं, पाश्चात्य संसारमें पुरुष इस अवधि में स्त्रियोंके साथ कैसा व्यवहार करते हैं या मुसलमान लोग इस परिस्थिति में क्या करते हैं। फिलहाल, तुम्हें अपनी खोज जारी रखनी चाहिए और अगर इस विषयपर कोई साहित्य हो तो उसे पढ़ना चाहिए । अगर तुम इस विषय- पर अपने कुटुम्बियोंसे पत्रव्यवहार कर सको तो करो। और अब चूंकि इसमें लग ही गई हो तो मैं इसके बारेमें जो भी जानकारी प्राप्त कर सकता हूँ, प्राप्त करने की कोशिश करूँगा ।