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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रार्थना आदिके बारेमें तुमने जो कुछ कहा है, उसे मैं समझता हूँ । मैसूरके कार्यक्रमका भार मैं मजेमें बरदाश्त कर गया ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२५४ ) से ।

सौजन्य : मीराबहन

२०२. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मौनवार, आषाढ़ बदी १२ [२५ जुलाई, १९२७][१]


बहनों,

आजका पत्र तुम्हारी हाजिरीके बारेमें लिखना चाहता हूँ । हाजिरीमें अनिय- मितता बहुत पाता हूँ । आश्रममें बहनोंका सामाजिक जीवन और उनकी सामाजिक सेवा इस स्त्री-वर्गसे शुरू होती है। इसलिए जैसे हम रोज खानेका नियम बीमारी आदिके कारण ही तोड़ते हैं, वैसे ही कक्षामें हाजिरी देनेका नियम भी ऐसे किसी बड़े कारणसे विवश होकर ही तोड़ सकते हैं। बहनोंने इस कक्षामें नियमित रूपसे आनेका व्रत लिया है। तो फिर वे इस व्रतको कैसे तोड़ सकती हैं? जिस प्रकार शरीरके नियमों का पालन करके शरीरकी रक्षा की जाती है उसी प्रकार संस्थाके नियमोंका पालन करके संस्थाको और समाजके नियमोंका पालन करके समाजको कायम रखा जाता है । इसलिए क्या तुम मुझे यह आश्वासन नहीं दे सकतीं कि ऐसे किसी कारणके बिना जिसके विषय में दो मत हो ही नहीं सकते कोई भी बहन गैरहाजिर नहीं रहेगी ?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६५९ ) की फोटो - नकल से ।

  1. गांधीजी द्वारा उपस्थिति पंजिकाकी जांचके आधारपर इस शीर्षकका वर्ष निर्धारित किया गया है।