२०३. पत्र : वसुमती पण्डितको
मौनवार [२५ जुलाई, १९२७][१]
चि० वसुमती,
तुम्हारे दोनों पत्र मिल गये हैं। तुम जितना चाहे अध्ययन करो किन्तु अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखना । मैं समझता हूँ कि तुम हरिभाईकी विधवा चि० कुसुमसे मिलने जाओगी। यदि जाओ तो उसकी स्थिति के बारेमें जानकारी प्राप्त करना । मैंने उसे पत्र लिखा है ।[२] उसकी क्या इच्छा है ? क्या उसके माता-पिता हैं ? उसकी आयु कितनी है ? उसकी आर्थिक स्थिति कैसी है ? वह शान्त है या दुःखी ? यदि तुम उसके विवाह के बारेमें कुछ जानती हो तो लिखना और यदि न जानती हो तो जानने की कोशिश करना। मैं सोचता था कि इस बारेमें किसी रोज हरिभाईसे ही सब कुछ जान लूँगा किन्तु वे तो चले गये ।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (सी० डब्ल्यू० ६१६) की फोटो- नकलसे ।
सौजन्य : वसुमती पण्डित
२०४. पत्र : कुँवरजी पारेखको
मौनवार [२५ जुलाई, १९२७][३]
चि० कुँवरजी,
मैं तुम्हें रोज याद करता हूँ । यह पोस्टकार्ड यही बतानेके लिए लिख रहा हूँ । समय ही नहीं मिलता। रामदास तुम्हारे समाचार देता रहता है । उम्मीद है तुम्हारा मन शान्त होगा ।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (एस० एन० ९७०३) की फोटो - नकलसे ।