२०६. पत्र : राजकिशोरी मेहरोत्राको
बंगलोर
२६ जुलाई, १९२७.
चि० राजकिशोरी,
तुम्हारा पोस्टकार्ड मिला है। वैसे ही लिखती रहो। आजकल पठन-पाठन कया हो रहा है? दिनचर्या कया है? शरीर प्रकृति कैसी है ?अगस्त मासतक मैं बेंगलोर में ही हूं। शक्ति आ रही है ।
बापूके आशीर्वाद
सौजन्य : परशुराम मेहरोत्रा
२०७. पत्र : जेठालाल जोशीको
बंगलोर
आषाढ़ कृष्ण १३[२६ जुलाई, १९२७]
भाई जेठालालजी,
आपका पत्र मिला।
तकलीके साथ गायत्री जप जपनेमें कुछ हानि नहीं देखता हूं, लाभ ही है । विशेषतः जब सूत यज्ञार्थ काता जाय, अर्थात् गरीबोंके निमित्त दान के लिये ।
आपकी धर्मपत्नी अपने पिता के घर जानेके समय खादीके ही वस्त्र पहनकर जाय और मात-पिता खादी छोड़नेका आग्रह करे तो उनको विनयसे समजावे । मात-पिता क्रोध करे तो शांति से सहन करे । यदि उसमें उतनी हिम्मत न हो अथवा मातपिताका क्रोध सहन करनेकी शक्ति न हो तो उनको प्रसन्न करनेके लिये जब तक आवश्यक हो जो वस्त्र वे देवे उसे पहने ।
एक ही समय खानेका व्रत लेनेकी आवश्यकता नहीं है। दो समयका एक समय में खा लेने में दोष और हानि है । रात्री भोजन छोड़ना आवश्यक है सही, और प्रत्येक भोजन में अल्पाहारी रहना आवश्यक है ।
आप कया काम करते हैं ?और कया कया कर सकते हैं ?आपका अभ्यास कया है इ० मुझको लिखें