पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५७
एक पत्र

संभव है कि आपको दूध अच्छा आश्रम में से मिल सकेगा । आप वहाँ दर्याफत कीजिए । आश्रममें से आपको दूध घर पर पहुँचा नहीं सकेंगे ।

आपका,

मोहनदास

जी० एन० १३५५ की फोटो नकलसे ।

२०८. एक पत्र

२६ जुलाई,१९२७

आपका पत्र मिला । धर्मपत्नी यदि अपवित्र हो गई है तो मैं इसके लिए आपको भी दोषी मानता हूँ । आप उससे दूर चले गये थे । उस बालाका सम्भवतः न तो आपके साथ विवाह करनेमें कोई हाथ था और न आपसे बिछुड़ने में उसकी सहमति थी । यदि वह विषय-भोगके बिना न रह सके और पतित हो जाये तो इसमें उसका क्या दोष निकालना ? जब पुरुष गिरता है तब स्त्री जी मसोसकर रह जाती है। आपकी पत्नीने जिस पुत्रको जन्म दिया है यदि वह आपका नहीं है तो आप उससे सम्बन्ध तोड़ सकते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि उस बालाका भरण-पोषण तो आपको ही करना चाहिए। अगर वह आपको छोड़ दे अथवा जिसके साथ उसने विषय-भोग किया है उसके साथ रहने लगे तो इसे आपको सहन करना होगा । केवल लज्जावश आप अपनी पत्नी के साथ रहनेके लिए बँधे हुए नहीं हैं । आप उससे दूर गये इसीसे वह पथभ्रष्ट हुई, ऐसा समझकर और उसपर तरस खाकर यदि आप अब उसके साथ रहने की बात सोचें तो इसमें भी कोई अनीति नहीं है । लेकिन यह कदम तो आप तभी उठा सकते हैं जब उस स्त्रीको अपने कियेपर पश्चात्ताप हो और आपके साथ रहनेमें उसे सन्तोष हो । यदि उसका मन सर्वथा व्यभिचारी हो गया हो तो उसका त्याग करना ही आपका कर्त्तव्य है ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई

३४-१७