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२०९. भाषण : बंगलोरके यूनाइटेड थियोलॉजिकल कालेजमें[१]

[२६ जुलाई, १९२७][२]

[गांधीजीने कहा कि ] देशकी आम जनताकी सेवा करनेकी आकांक्षा रखने- वालों को सबसे पहले तो यह चाहिए कि वे हिन्दीका ज्ञान प्राप्त करें। उन्होंने आगे कहा :

मैं यह स्वीकार करता हूँ कि पिछली पीढ़ीकी गलती के कारण हमें अंग्रेजी माध्यमको अपनाना पड़ा। लेकिन, यदि आप विन्ध्य पर्वतमाला के पारकी भारतीय जनताके हृदयतक पहुँचना चाहते हैं तो आपको इस व्यवधानको दूर करना ही होगा । आपको किस प्रकारकी सेवा करनी चाहिए, इसके सम्बन्धमें में ज्यादा कुछ कहनेकी जरूरत नहीं समझता, क्योंकि आपने चरखेके सन्देशका अनुमोदन करके मेरे लिए अपनी बात कह सकना बहुत आसान बना दिया है। आपने दलित वर्गोंकी बात कही है, लेकिन हमारे देशमें एक ऐसा विशाल जनसमुदाय है जो इन तथाकथित दलित वर्गों के लोगोंसे भी अधिक दलित अवस्था में जी रहा है । और वहीं जनसमुदाय असली भारत है । रेलमार्गोंका यह विस्तृत जाल तो उस जनसमुदायको बाहर-बाहरसे छूता भर है, और अगर आप उनकी स्थितिका सही अन्दाजा पाना चाहते हैं तो जरा इन रेलमार्गों से हटकर कुछ भीतर जाकर वस्तु-स्थितिको देखिए । उत्तरसे दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर फैले ये रेलमार्ग उन नालियोंकी तरह ह जिनसे जनसाधारणको सम्पत्ति बहकर बाहर निकल जाती है और बदलेमें उसे कुछ भी नहीं मिलता । लॉर्ड सैलिसबरीने इसे 'खून चूसना' कहा था । और हम नगरोंमें रहनेवाले लोग खून चूसनेके इस व्यापारमें भागीदार बनते हैं। लॉर्ड सैलिसबरीका यह मुहावरा सुनने में चाहे जितना बुरा लगे, लेकिन यह वस्तु-स्थितिकी सच्ची तसवीर पेश करता है । इस वर्गको मैंने किसी हदतक जाना है, अक्सर उसके अभावों और आवश्यकताओंके विषय में चिन्तित मनसे सोचा है; और अगर में चित्रकार होता तो इन लोगोंका चित्र खींचकर आपको इनकी दशाका सही दर्शन कराता । उस चित्रमें आप देखते कि इनकी सूनी-सूनी आँखोंमें कोई चमक, कोई तेज, जीवनका कोई चिह्न शेष नहीं रह गया है । हम उनकी सेवा कैसे करें ? टॉल्स्टॉयने एक बहुत सजीव और अर्थ- गर्भित वाक्य कहा है : 'हम अपने पड़ोसियोंकी पीठ परसे उतर जायें।" अगर हर आदमी सिर्फ यही काम कर दिखाये तो उसका मतलब होगा कि ईश्वर उससे जितनी सेवाकी अपेक्षा रखता है, उतनी उसने कर दी । यह बात कुछ चौंका

  1. महादेव देसाईके लिखे मिशनरियों के साथ बातचीत " ( " टॉक्स विद मिशनरीज " ) शीर्षक लेखसे। गांधीजीकी इस चर्चाका आधार कालेजका पद ध्येय वाक्य था: “खुद अपनी सेवा करानेके बजाय दूसरोंकी सेवा करो। "
  2. महादेव देसाईके “ साप्ताहिक पत्र " के अनुसार ।