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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगाते हो किन्तु मुझे उसमें जल्दबाजीका लेशभी दिखाई नहीं पड़ता । तथापि चूँकि तुम्हारे इस पत्रसे मुझे दुःख हुआ है इसलिए मुझे यह अवश्य लगता है कि इसके सम्बन्धमें कुछ भी जल्दीमें न लिख डालूं । तुम्हारे अन्तिम पत्रसे मैं यह समझा हूँ कि तुम अपनी माँकी बीमारीके कारण ही अपनी सामान्य आदतके अनुसार मुझसे मिलनेके लिए नहीं दौड़े आये । इसलिए यदि अब उनकी तबीयत अच्छी हो गई हो तो मैं चाहूँगा कि तुम मुझसे मिल जाओ। अलबत्ता, यदि तुम्हें ऐसा लगता हो कि तुम्हें गलतफहमी हो ही नहीं सकती तो मैं मिलना जरूरी नहीं समझता। अगर तुम्हारा यही मत हो तो मुझे लिखना, या तार देना और तब मैं तुम्हारा पत्र अवश्य प्रकाशित करूँगा ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई

२१२. पत्र : ज० प्र० भणसालीको

[२७ जुलाई, १९२७][१]

तुम्हारा पत्र ( या अल्टिमेटम ? ) मिला। लगता है मेरा पत्र पहुँचने के पहले ही तुमने अपना पत्र भेज दिया । मेरा आग्रह है कि तुम उतावली न करो। तुम्हें उतावली नहीं मालूम होती क्योंकि तुम उपवासके लिए अधीर हो उठे हो। मुझे तो इसमें उतावली ही मालूम होती है। तुम ऐसा कुछ करना चाहो तो वह तुम्हें मेरे समक्ष ही करना चाहिए। यदि इस नीतिको तुम स्वीकार करो तो यह अल्टीमेटम तुम वापस ले लो। तुम्हें उपवाससे रोकनेके लिए मेरे पास तीन बहुत आग्रहपूर्ण पत्र आये हैं। एक भाई किशोरलालका, दूसरा रमणीकलालका और तीसरा मीराबह्नका । मीरा- बहन तुमसे लम्बे अरसेके बाद मिली, तुम्हें देखकर बहुत दुःखी हुई, तुम्हारा चेहरा उसे 'विचित्र' लगा, तुम्हारी बात भी 'विचित्र' लगी और ऐसा लगा कि तुम बहुत 'इमो- शनल' [ भावुक ] हो गये हो। ये सब शब्द उसीके हैं। पत्र हिन्दीमें था किन्तु यह अंग्रेजी शब्द उसमें उसीके द्वारा प्रयुक्त हुआ है । मैंने उसे सीधे तुम्हें लिखनेको[२] कहा था । इसका भी जवाब आ गया है और वह लिखती है कि इस हदतक जानेकी उसकी हिम्मत नहीं होती - इस डरसे कि ऐसा करनेसे शायद तुम्हें बुरा लगेगा। तीन व्यक्तियोंकी ये तीन रायें मैंने तुम्हें बताईं फिर भी यदि मैं तुम्हारे पास होता और तुम मुझे अपनी बात समझा सकते तो मैं तुम्हें उपवास करनेकी अनुमति दे देता और आशीर्वाद भी देता । किन्तु जब मैं तुमसे दूर बैठा हुआ हूँ तो मुझे अपने ऊपर इन पत्रोंका असर भी होने ही देना चाहिए। तुम्हारा प्रस्तुत पत्र तुम्हारे पिछले पत्रसे असंगत जान पड़ता है ।

  1. देखिए अगला शीर्षक ।
  2. देखिए " पत्र : मीराबहनको ", १७-७-१९२७ ।