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पत्र : ज० प्र० भणसालीको

कारण, आजतक तो तुम मेरी अनुमतिकी आशा रखते आये हो और मैं ऐसा समझता था कि यदि मेरी अनुमति न मिले तो तुम उपवास नहीं करोगे। किन्तु इस अन्तिम पत्रमें तुम अनुमतिकी उपेक्षा करते मालूम होते हो; उसकी आशा नहीं रखते और आशीर्वाद माँगते हो। यदि तुमने अनुमतिकी आशा रखी हो तो वह मैं तुम्हें दे नहीं सकता। जो बात मुझे उचित नहीं मालूम होती उसकी अनुमति में कैसे दे सकता हूँ ? मुझे तो यह भी लगता है कि तुम जो करना चाह रहे हो उसमें तुम्हें मेरी अनुमति मिल भी जाये तो भी मुझे और तुम्हें, दोनोंको कार्यवाहक मंडलकी अनुमति भी लेनी चाहिए। ऐसी अनुमति मिल जानेपर यदि कोई व्यक्ति इस तरहका काम करनेके लिए मुक्त हो सकता हो तो वह व्यक्ति शायद मैं हो सकता हूँ । कारण, आश्रमके संस्थापक और सत्याग्रहके स्वतन्त्र तथा मौलिक प्रयोगोंके कर्त्ताकी हैसियतसे मुझे यह छूट दी जा सकती है - यद्यपि इसके बारेमें भी मुझे थोड़ी शंका तो है ही । बात यह है कि संस्थाकी रचना करनेके बाद मुझे भी अपने लिए अपनी इच्छासे ऐसा कोई काम करनेका अधिकार नहीं लेना चाहिए जिससे संस्थाको नुकसान पहुँचे । मैंने जब सात दिनका उपवास किया था तब भी यह प्रश्न मेरे सामने था और उसके बारेमें कुछ चर्चा भी हुई थी।

यह इतनी आत्मकथा मैंने तुम्हें तुम्हारे धर्मका भान करानेके उद्देश्य से लिखी है। मैं यह मानता हूँ कि तुम जिस तरहका उपवास करना चाहते हो वैसे उपवासके लिए विशेष परिस्थितियोंमें स्थान हो सकता है। किन्तु मैं तो यहाँसे स्पष्ट देख सकता हूँ कि इस मामले में वैसी परिस्थिति नहीं है । और जिस वस्तुको में अनुचित मानता हूँ उसे मैं आशीर्वाद कैसे दे सकता हूँ ? इसलिए यदि तुम अपने आग्रहपर आरूढ़ रहना ही चाहो तो मैं इतना ही कह सकता हूँ कि मैं तुम्हारा आग्रह सहन कर लूंगा और उसे अपरिहार्य मानकर अनिच्छा और दुःखके साथ स्वीकार कर लूंगा । जो भी कदम उठाओ, उसे उठाने के पहले स्वस्थ चित्तसे कार्यवाहक मण्डल के साथ चर्चा करना और अपने निजी मित्रोंसे भी उसकी चर्चा करना । लीलाबहन के प्रति अपने कर्त्तव्यका विचार करना । वह तुम्हारे कार्यसे सहमत हो तो मैं उसकी सम्मतिकी कोई कीमत नहीं करूँगा; हाँ, वह उसका विरोध करे तो उसके विरोधकी बहुत कीमत करूँगा - क्योंकि तुमने उसकी बाँह पकड़ी है । यदि तुम अपना अल्टिमेटम वापस ले सको और वापस लो, तथा मुझे अभय दो यानी ऐसा आश्वासन दो कि मेरी अनुमतिके बिना तुम उपवास नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे साथ उपवासकी नैतिक मीमांसा के सम्बन्धमें और अपने पिछले पत्रोंमें तुमने जो सवाल उठाये हैं उनके सम्बन्धमें, अभी तो पत्रोंके द्वारा और बादमें यदि जरूरत मालूम हुई तो अवसर आनेपर प्रत्यक्ष बातचीतके द्वारा, चर्चा करनेके लिए तैयार हूँ। मैं चाहता हूँ कि हमारा मित्र वर्ग और कार्यवाहक मण्डल भी यह पढ़ ले; तुम इसे उन्हें पढ़नेके लिए दे देना । ईश्वर तुम्हारी सहायता करे ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई