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२२१. पत्र : प्रभावतीको

बंगलोर
आषाढ़ कृष्ण १४ [२७ जुलाई, १९२७][१]

चि० प्रभावतो, तुम्हारा पत्र मिल गया है । अब तुम्हारे बारेमें कया हो रहा है मुझको लिखो । तुम्हारे लिये मैंने ऐसा ही मान लिया था कि तुमको बीमारी ही नहीं सकती हो है । अबके पत्र से पता चलता है कि तुमको भी बीमारी हो गई । कया हुआ था । मेरा स्वास्थ्य तो अच्छा रहता है । आजकल थोडा दौरा भी कर लेता हूँ । परंतु अगस्त के अंत तक बंगलोर ही केन्द्र होगा ।

बापूके आशीर्वाद

जी० एन० ३३२० की फोटो नकलसे ।

२२२. पत्र : टी० परमशिव अय्यरको

कुमार पार्क,बंगलोर
२९ जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपके पत्र और चेतावनीके लिए धन्यवाद | आपका पत्र पढ़कर स्थिति मेरे सामने कुछ ज्यादा स्पष्ट तो हुई नहीं । भद्रावतीके बारेमें आपने जो लिखा है, उसे मैं पढ़ने की कोशिश करूँगा ।

खैर, अब संक्षेपमें यह बताइए कि कृष्णराज सागरके बारेमें आपको क्या आपत्ति है। आपने सर एम० विश्वेश्वरैयापर झूठका आरोप लगाया है। आपकी समझसे इसमें उनका क्या हेतु हो सकता है ? मैंने उनके चरित्रके बारेमें जो कुछ सुना है, वह उनके पक्षमें जाता है। कर्नाटकके बाहर लोग उन्हें बहुत बड़ा देशभक्त मानते हैं। में व्यक्तिगत रूपसे भारतको अमेरिका बना देनेकी उनकी महत्त्वाकांक्षाके बिलकुल विरुद्ध हूँ। और भारतके हर गाँव में बिजली ले आनेका उनका जो स्वप्न है, उससे भी मैं सहमत नहीं हूँ। लेकिन इस मूलभूत मतभेदने मुझे इतना अन्धा नहीं बना दिया है कि मैं उनकी महान् योग्यता और उनकी महान् सेवाओंको देख ही न पाऊँ । इसलिए मेरे मन में उनका जो ऊँचा स्थान है उससे में उन्हें तबतक

  1. १९२७ में इस तारीखको गांधीजी बंगलोर में थे ।