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पत्र : एस० डी० नाडकर्णीको

नहीं हटा सकता जबतक कि उसके लिए निश्चित और असन्दिग्ध प्रमाण नहीं दिये जाते ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी० परमशिव अय्यर
अवकाशप्राप्त न्यायाधीश
'ह्वाइट हाउस'
बंगलोर सिटी

अंग्रेजी (एस० एन० १२६२३) की माइक्रोफिल्म से ।

२२३. पत्र : एस० डी० नाडकर्णीको

कुमार पार्क,बंगलोर
२९ जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपने देवनागरी लिपिको अखिल भारतीय लिपिके रूपमें अपनानेके बारेमें जो पत्र लिखा है, उसे में प्रकाशित करनेका इरादा नहीं रखता ।मुझे काकासाहब कालेल-करने इसी तरहका और इससे भी अधिक विस्तृत एक पत्र लिखा था, लेकिन मैंने उसे भी प्रकाशित करनेका लोभ संवरण कर लिया, क्योंकि इससे उलझन पैदा होनेके सिवाय और कुछ नहीं होगा ।देवनागरीका सुधार, वह कितना ही वांछनीय क्यों न हो, मुख्य विषय नहीं है। यदि हम विचारकोंको एक सामान्य लिपिके रूप में देवनागरी-को अपनानेके लिए प्रेरित कर सकें, तो जहाँ आवश्यक होगा,वहाँ इसमें सुधार तो अवश्यमेव होगा ।

व्यक्तिगत रूपसे मुझे आपका यह सुझाव पसन्द है कि अक्षरोंपर शिरोरेखा लगाना छोड़ दिया जाये । काकासाहब तो इससे भी आगे जाते हैं, और गुजराती लिपिको अपनानेका सुझाव देते हैं, जो नागरी लिपिका ही सुधरा हुआ रूप है । लेकिन मैंने काकासाहबके सुझावको प्रकाशित नहीं किया है, क्योंकि इससे कभी न खत्म होनेवाले एक लम्बे विवादका सिलसिला शुरू हो जायेगा, और भारतके विचारशील लोगोंका ध्यान मुख्य विषयसे हट जायेगा । यद्यपि मैं यह मानता हूँ कि देवनागरीका किसी-न-किसी रूप में सुधार आवश्यक है, लेकिन फिलहाल में इसपर कोई ध्यान नहीं देना चाहता । यदि सभी एक सामान्य लिपिको, चाहे वह कितनी ही अपूर्ण क्यों न हो, स्वीकार कर लेते हैं तो उससे राष्ट्रीय शक्तिकी भारी बचत होगी और वह विभिन्न भाषा-भाषी प्रान्तों द्वारा परस्पर एक-दूसरेके समीप आनेकी दिशा में उठाया गया एक कदम होगा।

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