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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं 'नवजीवन' देवनागरीमें प्रकाशित क्यों नहीं करता, आपकी जानकारीके लिए में इसका कारण बताये देता हूँ । 'नवजीवन' का अपना एक सीमित उद्देश्य है। इसका सन्देश प्रभावकारी हो, इसके लिए हमने इसकी ग्राहक संख्या में कमी आ जानेकी स्थितिको भी स्वीकार किया । आप शायद नहीं जानते कि एक समय 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया', दोनोंमें से प्रत्येककी ग्राहक संख्या लगभग ३०,००० हो गई थी, लेकिन आज वह ७,००० से भी कम है । जिस उद्देश्य को लेकर इन पत्रोंको आरम्भ किया गया था, उसको सफल बनानेके लिए यदि यह संख्या शून्यतक भी पहुँच जाये तो मुझे चिन्ता नहीं होगी । देवनागरीको अपनाना उस उद्देश्यका हिस्सा नहीं था । 'नवजीवन' के पाठकोंमें एक बहुत बड़ी संख्या महिलाओं, पारसियों और मुसल- मानोंकी है और ये लोग गुजराती टाइपको भी कुछ दिक्कत से पढ़ पाते हैं ।'नव- जीवन' के सम्पादन में जो थोड़े-से संस्कृत शब्द प्रयोगमें लाये जाते हैं, उन पाठकोंको इन शब्दोंको भी समझने में कठिनाई होती है । अगर मैं देवनागरीको अपनाता हूँ तो ये सब लाचार हो जायेंगे और उकताकर 'नवजीवन' को और मुझे त्याग देंगे । जिन्हें उच्चवर्गीय कहा जा सकता है, उन लोगोंमें तो मेरे विचारसे 'नवजीवन' के बहुत कम पाठक हैं ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस० डी० नाडकर्णी
कारवार
(उत्तर कनारा )

अंग्रेजी (एस० एन० १२६२५ ) की फोटो नकलसे।

२२४. पत्र : टी० आर० महादेव अय्यरको

कुमार पार्क,बंगलोर
२९ जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

मेरे विचारसे तो आम लोगों और विशेषकर दाताओंको समय रहते सूचना दे देनेके बाद आपके लिए यह सर्वथा उचित, बल्कि आवश्यक होगा कि यदि तथा- कथित प्रबन्ध समिति, अर्थात् अपने-आपको इस समिति के संघटक बतानेवाले लोग पंच- फैसले के लिए तैयार नहीं होते तो आप गुरुकुलकी चल-अचल सारी सम्पत्ति उन्हीं लोगोंको सौंप दें ।

मैंने आपके प्रश्नोंके जो उत्तर दिये हैं, उन्हें किसी भी तरह कानूनी सलाह मत मानिए। मेरी सामान्य बुद्धिने मुझे जो कहा, वह मैंने लिख दिया । और यद्यपि आपके द्वारा उन उत्तरोंको प्रकाशित करनेपर मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी, फिर भी