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पत्र : टी० टी० शर्मनको

मैं चाहूँगा कि आप उन्हें प्रकाशित न करें, क्योंकि मैं उनमें से किसी भी उत्तरको लेकर सार्वजनिक विवादमें नहीं पड़ना चाहता ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी० आर० महादेव अय्यर
तमिल गुरुकुल
शेरमहादेवी

अंग्रेजी (एस० एन० १२९३५ ) की फोटो - नकलसे ।

२२५. पत्र : टी० टी० शर्मनको

कुमार पार्क,बंगलोर
२९ जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपके पत्र साथ के आपके साप्ताहिककी एक प्रति भी मिली। मुझे लगता है कि मेरा आपके पत्रके लिए कुछ लिखना बिलकुल बेकार होगा, क्योंकि मैं उसे नहीं पढ़ सकता और इसलिए नहीं जानता कि उसमें आप क्या कुछ देते हैं। मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने कभी किसी ऐसे पत्रके लिए कुछ लिखा हो, जिसकी नीति और सिद्धान्तोंसे मैं परिचित न होऊँ और जिनके संचालकोंके बारेमें भी मुझे कोई जानकारी न हो। अतएव, मुझे उम्मीद है कि आप मुझे क्षमा करेंगे तथा मुझे विश्वास है कि इस समय मेरा स्वास्थ्य जैसा चल रहा है, उसे देखते हुए आप नहीं चाहेंगे कि मैं आपके पत्रके अनुवादके लिए किसी मित्रको कष्ट दूं और फिर उसे पढ़ने-समझने में इतना सारा समय लगाऊँ ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी० टी० शर्मन
सम्पादक
'विश्वकर्नाटक'
बंगलोर सिटी

अंग्रेजी (एस० एन० १४२०१ ) की माइक्रोफिल्म से ।