पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/३१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७९
पत्र : कुसुमवह्न देसाईको

श्री जोगलेकरके छोटे करघेकी मैं उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा करूँगा ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एच० जी० पाठक

२८३, सदाशिव पेठ

पूना शहर

अंग्रेजी (एस० एन० १९७९३) की माइक्रोफिल्मसे ।

२२९. पत्र : कुसुमबहन देसाईको

बंगलोर
२९ जुलाई, १९२७.

चि० कुसुम,

मैं तो तुम्हारे पत्रकी प्रतीक्षा कर ही रहा था । कुछ हाल तो मुझे चि० वसुमतीने लिखा था, जिसकी अब तुम्हारे पत्रने पूर्ति कर दी।

हरिभाईके विद्यार्थियोंको तुम सँभाल लो और वे तुम्हारी देख-भाल और रक्षा करें, इससे अच्छा मुझे और कुछ नहीं जान पड़ता। परन्तु इस कामकी जिम्मेदारी तुम उठा सकती हो या नहीं, यह तो तुम्हीं ज्यादा जान सकती हो। मैं देखता हूँ कि तुम जिस हदतक हरिभाईकी पत्नी थीं उसी हदतक उनकी शिष्या भी थीं । तुम्हारा मन कहाँतक तैयार हुआ है, यह तो तुम और तुम्हारे हितेच्छु यानी हम सब, अनुभवसे ही जानेंगे। अपने मनका हमें हमेशा पता नहीं होता ।

चि० वसुमती तथा भाई छगनलाल जोशीके पत्रसे जान पड़ता है कि तुम्हारे विवाहमें तुम्हारा काफी हाथ था। हरिभाईसे ही विवाह करनेका आग्रह तुम्हारा ही था । तुम अपने इस चुनावको अनेक प्रकारसे सुशोभित कर सकती हो। जो लड़की अपने से बहुत बड़ी उम्र के पुरुषको पतिके रूपमें पसन्द करती है, वह उसके शरीरको नहीं परन्तु उस शरीरके स्वामीको वरण करना पसन्द करती है । हरिभाईका शरीर छूट गया। परन्तु वे स्वयं तो आज भी तुम्हारे पास हैं, और जबतक तुम चाहो तबतक तुम्हारे पास रहेंगे ।

मुझसे जो पूछना चाहो, पूछ लेना । इस मासके अन्त तक में बंगलोर में ही हूँ ।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]

बापूना पत्रो :कुसुमबहन देसाईने