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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो हमें उनकी भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए और ईश्वरपर विश्वास रखकर यही मानना चाहिए कि वह तो सभीका रक्षक और अपने कार्य के लिए जिसे चाहता है उसे साधन बना लेता है । यदि हमारे पिता हमारे पास ही हों और कोई अन्य व्यक्ति उनकी सेवामें नियुक्त हो तथा हमारे हिस्से कोई दूसरा काम आ जाये तो ऐसी स्थिति में भी उपर्युक्त नियम ही लागू होता है । जो नियम पिताके सम्बन्धमें लागू होता है वही भाई, भतीजे और स्त्री-पुत्रादिके सम्बन्धमें भी समझना चाहिए। अपना काम सीखनेके लिए तथा आश्रमके वातावरणसे जितना ग्रहण कर सको उतना ग्रहण करनेके लिए ही तुम वहाँ हो। ऐसा करते हुए तुम्हें और भी बहुतसी बातें देखने-सुननेको मिलेंगी किन्तु तुम्हारा कर्त्तव्य इतना ही है कि अपनी इस जानकारीको तुम जिम्मेदार व्यक्तितक पहुँचा दो। इसी प्रकार हम समाज में शान्तिपूर्वक रह सकते हैं। यदि दुनियाके ठेकेदार बननेकी कोशिश करेंगे तो मारे जायेंगे ।

वहाँके ईश्वरीय कोपका तुम्हें ठीक अनुभव हुआ।[१] इस बारे में मुझे लिखना । अपने स्वास्थ्यके बारेमें भी पूरी खबर देना ।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई

२४१. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

श्रावण सुदी ४ [ १ अगस्त, १९२७]

बहनो,

इस बार डाक अनियमित हो गई है। सोमवारकी डाक ठेठ कल पहुँची । आशा है इतनी बरसात और बाढ़के कारण तुममें से कोई घबराई नहीं होगी। ऐसे मौके यह परीक्षा लेनेके लिए आते हैं कि हमने जिन्दगीका सबक सीखा है या नहीं। हमारी कोशिशोंके बावजूद यदि आश्रम बह जाये तो क्या और रह जाये तो क्या ? और जो बात आश्रमकी है, वही अहमदाबादकी है । आश्चर्यकी बात तो यह है कि इतनी बाढ़ आनेपर भी इतना बच गया । मगर हमें क्या पता कि बचनेमें लाभ है या बह जानेमें ? बचा सो गया और गया सो बचा हो तो किसे मालूम ? मगर बचना सबको अच्छा लगता है, इसलिए बच जाते हैं तो ईश्वरका उपकार मानते हैं । किन्तु सच पूछा जाये तो हर हालत में और हर समय उसका एहसान ही मानना चाहिए । इसीका नाम समत्व है ।

  1. भीषण वर्षा और बाद, देखिए अगला शीर्षक ।