२४३. पत्र : सी० वी० वैद्यको[१]
कुमार पार्क,बंगलोर
३ अगस्त, १९२७
प्रिय श्री वैद्य,
मुझे आपका पत्र बहुत पसन्द आया । मैं जानता हूँ कि आपमें एक न्यायाधीशका सहज गुण है और आप एक लम्बे अर्सेतक ग्वालियर में न्यायाधीशके पदपर रहे हैं । लेकिन आपके पत्रने मेरे मन में उत्सुकता जगा दी है, और मुझे आपकी पुस्तकोंको पढ़ने- के लिए अवश्य ही समय निकालना पड़ेगा। वे मराठी में लिखी हुई हैं या अंग्रेजीमें ? हमारे यहाँके जो अच्छे लेखक हैं, और में बहुत दिनोंसे जानता हूँ कि उनमें एक आप भी हैं, उनकी कृतियोंसे भी मैं बिलकुल अनभिज्ञ हूँ । आशा है, आप मुझे इसके लिए क्षमा करेंगे। क्या करूँ, किस्मतने मुझे इस तरहकी चीजें पढ़ने का कभी समय ही नहीं दिया ।
आप बताते हैं कि आपने अपनी पुस्तकोंमें यह दिखाया है कि वैदिक कालमें हमारे पूर्वज गो-मांस खाया करते थे । क्या विद्वान् लोग आपके इस निष्कर्षसे सहमत हैं ?
हृदयसे आपका,
सदाशिव पेठ
अंग्रेजी (एस० एन० १२६२९) की फोटो - नकलसे ।
२४४. पत्र : डॉ० गुरुदास रायको
कुमार पार्क,बंगलोर
३ अगस्त, १९२७
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला । मुझे पूरा यकीन है कि आप इंग्लैंड और स्काटलैंडमें यूरोपीय कपड़ेके बिना काम चला सकते हैं, बशर्ते कि आप साथमें हाथ-कते काफी ऊनी वस्त्र ले जायें। यदि आप काश्मीरके हाथ-कते अत्यन्त सुन्दर ऊनी वस्त्र खरीदें, तो हो सकता है कि वे जरा ज्यादा मँहगे पड़ें। आप शायद नहीं जानते होंगे कि जब पण्डित मोतीलाल नेहरू स्कीन कमेटीके[२] सदस्य के रूपमें यूरोप जानेकी तैयारी कर रहे थे, उस समय उन्होंने अपनी सारी ऊपरी पोशाक, यहाँतक कि जाकिट भी हाथ-कते