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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ओर आकृष्ट होने लगे हैं तो हमें चाहिए कि हम उनमें इस भावनाको चुपचाप बढ़ने दें। उसके लिए मेरे अथवा तुम्हारे प्रोत्साहन की कोई जरूरत नहीं है; लेकिन यदि हमें इस क्षेत्रमें कोई ठोस उपलब्धि मिलती है, अर्थात् यदि हम खादीका उत्पा- दन बढ़ाते हैं, चुपचाप प्रयत्न करते हुए नियमित रूपसे उसकी किस्ममें सुधार करते जाते हैं, उसकी कीमतें कम करनेमें सफल होते हैं और बराबर अधिकाधिक नौजवानों- को रोजगार देते रहते हैं तो उनकी भावनाको निश्चय ही प्रोत्साहन मिलेगा। तुम्हें प्रेरणा और उत्साह देनेवाली बातोंके बिना भी काम चलाना सीखना चाहिए। चाहिए न ?

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस० एन० १९७९६ ) की माइक्रोफिल्म से ।

२४६. पत्र : ए० रंगस्वामी अय्यंगारको

कुमार पार्क,बंगलोर
३ अगस्त, १९२७

प्रिय रंगस्वामी,

पता नहीं, आपने नागपुर सत्याग्रह के सम्बन्धमें जो गश्ती चिट्ठी भेजी है, आप उसके उत्तरकी अपेक्षा रखते हैं या नहीं। लेकिन यदि अपेक्षा रखते हों तो 'यंग इंडिया' में हाल ही में लिखे अपने लेखमें[१] मैंने जो कुछ कहा है, उससे ज्यादा कहनेकी मैं नहीं सोच सकता । उस लेखमें जो कुछ मैंने लिखा है, यदि उससे ज्यादा जानकारीकी आवश्यकता हो अथवा यदि कमेटी मुझसे और प्रश्न पूछना चाहती हो तो मैं खुशी के साथ उनके उत्तर दूंगा । अगर मेरा ही खयाल करके मेरे मतको कोई महत्त्व न देना सम्भव हो तो इस पत्रका उपयोग किसी अहम दस्तावेजके रूपमें करनेकी जरूरत नहीं है ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४२०६ ) की फोटो - नकलसे ।

  1. देखिए खण्ड ३३, "नागपुर सत्याग्रह ” १९-५-१९२ ।