पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/३३३

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२४७. पत्र : आर० बी० ग्रेगको

कुमार पार्क,बंगलोर
३ अगस्त, १९२७

प्रिय गोविन्द,

तुम्हारा पत्र मिला। अभी मैं दौरेपर हूँ और यह पत्र बोलकर लिखवा रहा हूँ । यह दौरा मैं रुक-रुककर सुविधापूर्वक कर रहा हूँ ताकि मेरे स्वास्थ्यपर कोई बुरा असर न पड़े। वैसे अब मेरा स्वास्थ्य दिन-ब-दिन बेहतर होता जा रहा है ।

तुम्हारी कृतिकी टाइप की हुई प्रतिकी में उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करूँगा । मिलने- पर मैं निश्चय ही उसे अच्छी तरह पढ़ जाऊँगा और अपना मत तुम्हें सूचित कर दूंगा । यदि कोई सुझाव देना हुआ तो वह भी दूंगा ।

तुम्हारा जो ऑपरेशन होनेवाला है, उसके बारेमें मुझको यह बतानेकी क्या जरूरत है कि तुम उसका खर्च क्यों नहीं दे सकते ? मैं बड़ी आसानीसे इसका प्रबन्ध कर सकता हूँ। लेकिन तुम इसे दिसम्बरतक टालना क्यों चाहते हो ? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि तुम पन्द्रह-एक दिनोंके लिए कोटगढ़ के कामसे फुरसत निकालकर ऑपरेशन अभी करवा लो, अथवा ऐसा कहें कि जितनी जल्दी में डॉ० दलालसे इसके लिए समय ले सकूँ उतनी जल्दी करवा लो ? तुम्हारा उत्तर मिलनेपर मैं उन्हें लिखूँगा ।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस० एन० १४२०८ ) की फोटो - नकलसे ।

२४८. पत्र : कृष्णदासको

हासन
३ अगस्त, १९२७

प्रिय कृष्णदास,

तुम बंगलोरसे जाते समय जो पत्र छोड़ गये थे, वह मुझे मिल गया था। उसमें उत्तर देने लायक कोई बात नहीं थी। सुब्बैयाको लिखा तुम्हारा पत्र मैंने अब पढ़ लिया है और मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम मुजफ्फरपुर में सफल रहे । तुम जो पत्र छोड़ गये थे. उसमें तुमने दरभंगा से फिर पत्र लिखनेका वादा किया था । वह पत्र अभीतक नहीं आया है । मैं यह जाननेके लिए बहुत उत्सुक हूँ कि तुम भले-चंगे हो और मैं गुरुजीके स्वास्थ्य के बारेमें भी सब कुछ जानना चाहता हूँ ।

यह पत्र मैं हासन नामक स्थानसे बोलकर लिखवा रहा हूँ, हम कल शाम यहाँ आये हैं । हम ५ को फिर बंगलोर पहुँचगे और ९ तारीखको पुनः अपना दौरा शुरू