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पत्र : स्वामीको

नियमित रूपसे चन्दा देते हैं। इसके अलावा आपके सुझाये ढंगसे यदि जरूरी पूँजी इकट्ठी कर भी ली जाये तो उससे उद्योगोंकी स्थापना करना कोई आसान बात नहीं है । उद्योग स्थापित करनेके लिए पूँजीके अतिरिक्त और बहुत-सी चीजोंकी जरूरत होती है। तीसरी बात यह है कि स्वास्थ्य बिगड़ जानेकी वजहसे में काम-काज में पहलेसे बहुत कम समय लगा पाता हूँ और जितना लगा सकता हूँ, वह सारा खादी-कार्य में ही चला जाता है। इसलिए यदि आपके मित्रोंको अपने हिस्सेका चन्दा इस राष्ट्रीय उद्योगके लिए देनेसे सन्तोष हो, तो मुझे उसे ग्रहण करके बड़ी प्रसन्नता होगी - लेकिन किसी और उद्योगके लिए नहीं ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जी० ए० पाटकर
बम्बई

अंग्रेजी (एस० एन० १४२११ ) की फोटो नकलसे ।

२५९. पत्र : स्वामीको

[४ अगस्त, १९२७के पश्चात् ][१]

तुम्हारे दो पत्र मिले। एक तुम्हें मुक्त करनेके विषयमें और दूसरा गुजरात- में आई बाढ़के विषय में ।

तुम्हारी मुक्तिकी माँगका काकाके[२] साथ हुए झगड़ेसे कोई सम्बन्ध नहीं है, यह मैं समझ गया हूँ और विश्वास करता हूँ । यदि मुझे ऐसा लगा कि तुम्हें मुक्त करना ही होगा तो मेरे वहाँ पहुँचे बिना ऐसा करना सम्भव नहीं है। कारण, अपने स्वभाव के अनुसार ऐसा कोई निर्णय करने के पहले मुझे मुख्य व्यक्तियोंकी जानकारी तो कर ही लेनी चाहिए। तभी मुझे यह सूझेगा कि क्या किया जा सकता है । भाई मोहनलालके विषयमें में कुछ जानता नहीं हूँ । तुम्हें पूरा विश्वास हो कि तुम उक्त काम करते हुए और अपनी इच्छानुसार यहाँ-वहां घूमते रहनेके बावजूद जिम्मेदारी के साथ यहाँका काम चलाते रहोगे तो मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है । किन्तु जबतक तुम जिम्मेदारी स्वीकार न करो तबतक मेरा निश्चिन्त रहना तो तभी हो सकता है जब मैं भाई मोहनलालकी जानकारी ले लूं और यह काम उन्हींको सौंप दूं या देख-रेख के लिए किसी अन्य व्यक्तिको नियुक्त कर दूँ । इस समय तो इन दोमें से, मुझे लगता है, कुछ भी नहीं किया जा सकता। अभी तो न्यासका मामला भी अधरमें लटका हुआ है ।

काम के सम्बन्धमें तुम यहाँ आ ही रहे हो, इसलिए जब तुम आओगे तब ज्यादा चर्चा करूँगा । काका प्रसन्न हैं। मैं तीन दिन बाहर घूम-फिरकर आया हूँ । इस

  1. पत्रमें बाढ़ की चर्चा और इसी तारीखको यंग इंडियामें प्रकाशित वल्लभभाईकी अपीलके आधारपर ।
  2. दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर ।