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पत्र : स्वामीको

भी मानता हूँ कि घूमे-फिरे बिना काम नहीं चल सकता । घूमे-फिरे बिना बैठे-बैठे नये आदमियोंसे काम लेनेका कौशल तो मुझमें कभी था भी नहीं। यदि वल्लभभाईकी अपीलके[१] बावजूद हमें काफी स्वयंसेवक नहीं मिलते तो हमें अपनी मर्यादा समझ लेनी चाहिए। यदि ज्यादा पैसा इकट्ठा हो जाये तो हम उसे पड़ा रहने दें या जो दूसरे लोग हमसे ज्यादा काम कर सकते हों उन्हें दे दें। दूसरी ओर यदि हमें ऐसा लगता हो कि हमारी इतनी प्रतिष्ठा है कि हम पैसा तो इकट्ठा कर सकते हैं किन्तु कार्यकर्त्ता इकट्ठा करनेकी शक्ति हममें नहीं है तो उचित यही होगा कि हम चुपचाप बैठे रहें, पैसेकी माँग करके अपनी प्रतिष्ठाको बेचनेसे बचें। तुम शायद जानते न होगे कि मलाबार में सभीके पास अतिरिक्त पैसा बच गया था, उसका कारण स्वयंसेवकोंका अभाव नहीं था । कारण यह था कि जिस समय सब-कुछ जड़- मूलसे उखड़ जाता है, नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है, उस समय लोगोंके काम करनेका ढंग कुछ अलग होता है और वे जिनकी बरबादी हुई है उनका खयाल भी नहीं करते । दुनियामें ऐसी शक्ति नहीं है जो करोड़ों आदमियोंके हुए नुकसानकी भरपाई कर दे । इसलिए हम यहाँ-वहाँ कुछ पैबन्द ही लगा सकते हैं और मैं मानता हूँ कि हमें यही करना चाहिए। इसका ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि ऐसा करते हुए धूर्त और चोर इकट्ठा किया हुआ पैसा खा न जायें, रक्षक भक्षक न बन जायें। यदि हम इतना कर सकें तो मानना चाहिए कि गंगा नहा आये। ऐसी बाढ़ देखकर तो लगता है कि हम बचपन में जो कहते थे वह वेद-वाक्य ही है-- यानी, यह ईश्वरका गेंदबल्लेका खेल है । एक दिन तो ऐसा भी होगा जब आजसे भी ज्यादा बड़ी बाढ़, प्रलय आयेगी । उस समय भी कुछ लोग तो बाकी बच ही जायेंगे, जो गये हुओंका शोक नहीं करेंगे, जो हुआ है उसपर हँसेंगे और वंशवृद्धि करते रहेंगे। इसका यह अर्थ नहीं करना चाहिए कि मैं ऐसा कहना चाहता हूँ कि हम निर्दय हो जायें या लोगोंकी राहत के लिए कुछ भी न करें तो भी कोई बात नहीं है। नहीं, मेरा यह मतलब बिलकुल नहीं है । किन्तु में यह जरूर कहना चाहता हूँ कि लोगोंका जो नुक- सान हुआ है उस सारे नुकसानकी जिम्मेदारी हम उठा लें, इसकी बिलकुल जरूरत नहीं है। इस नुकसान के कारण लोगोंको जो दुःख हुआ है उस दुःखको दूर करनेमें हमसे जितना कुछ हो सकता हो उतना करके हम सन्तुष्ट हो सकते हैं। में इस बातको बिलकुल नहीं मानता कि हमें इस अवसरका उपयोग करके स्वयंसेवकोंकी एक सेना खड़ी करनी चाहिए और एक बार पुनः गुजरातको जगानेका कार्य करना चाहिए। जब ठीक घड़ी आयेगी, लोगोंमें बुद्धि होगी और विधिका यह विधान होगा कि इस कार्यका निमित्त हमें ही बनना है, तो आज कुछ हो या न हो, उस समय न केवल गुजरात जागेगा बल्कि सारा भारत ही जाग उठेगा। किन्तु यह तो मेरे लिए श्रद्धाकी बात है। उसका विचार करनेके लिए यह उपयुक्त स्थान नहीं है । इस समय तो इतना ही काफी है कि वर्तमान परिस्थितियों में हम जो कुछ कर सकते हों उतना कर डालें ।

  1. ४-८-१९२७ के यंग इंडिया में प्रकाशित ।