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२६२. पत्र : मैसूरके महाराजाको

बंगलोर
५ अगस्त [ १९२७ ][१]

प्रिय मित्र,

आपके राज्यारोहण के बाद अगला सोमवार[२] आपके जीवनका शायद सबसे ज्यादा खुशीका दिन होगा। इस अवसरपर मैं आपको किन शब्दोंमें बधाई दूँ ? केवल शुभकामनाके शब्दोंसे काम नहीं चलेगा, चाहे वे शब्द कितने ही शुभेच्छापूर्ण क्यों न हों । लेकिन मुझे लगता है कि एक सच्चे मित्रके नाते मुझे इस अवसरपर कमसे- कम इतना अनुरोध तो अवश्य करना चाहिए कि आपने शहर में रहनेवाले मध्यम- वर्गीय लोगोंके लिए जो-कुछ इतनी सफलतापूर्वक किया है, वह सब आपको अपनी निर्धनतम प्रजाके लिए भी करना चाहिए। अगले सोमवार तककी अल्प अवधिमें आप, शायद कुछ विशेष न कर सकें। लेकिन क्या शराबके व्यापारपर रोक लगा सकना असम्भव है ? यह लोगोंको बरबाद कर रही है।

मैं जहाँ भी गया हूँ वहाँ मैंने आपकी उदारता और पवित्रताकी प्रशंसा ही सुनी है, इससे मुझे बहुत खुशी हुई है। लेकिन इतने अच्छे शासन में भी शराबखोरीकी बुराई मौजूद हो, यह बात कुछ ठीक नहीं जान पड़ती । लेकिन यह पत्र तो एक मित्र दूसरे मित्रको अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रकट करनेके लिए लिख रहा है, इसलिए मुझे इसको सर्वथा एक भाषणका रूप नहीं देना चाहिए। भगवान् आपको दीर्घायु बनाये जिससे आप अपनी प्रजाको सुखी रख सकें और अपने राज्यको हर तरहसे एक आदर्श राज्य बना सकें ।

मैं सोमवारको भगवान् से प्रार्थना करूँगा कि वह आपकी समस्त सदिच्छाओंको पूरा करे ।

आपका,
मित्र

[ पुनश्च : ]

इस पत्र की प्राप्ति स्वीकार करनेकी कोई बाध्यता न मानें ।

महाराजा मैसूर

अंग्रेजी (एस० एन० १२६३०) की फोटो - नकलसे ।

  1. १९२७ में इस तारीखको गांधीजी बंगलोर में थे ।
  2. महाराजाके राज्यारोहणकी रजत जयन्ती ८ अगस्त, १९२७ को मनाई गई थी। इस अवसरपर गांधीजीका एक औपचारिक सन्देश भी समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुआ था; देखिए अगला शीर्षक |