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२६३. सन्देश : रजत जयन्तीके लिए

[५ अगस्त, १९२७ ][१]

मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि आजतक किसीने महाराजा साहबके विरुद्ध कभी कुछ नहीं कहा है। कभी-कभी तो में सोचन लगता हूँ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मित्रोंने किसी भी बुरी खबरको मुझतक न पहुँचने देनेके लिए साँठ- गाँठ कर रखी हो। मैंने महाराजा साहब के बारेमें जो अच्छी बातें सुनी हैं, भगवान् करे, वे सब सच्ची हों और सदा सच्ची ही रहें। मैसूरके लोगोंके साथ मैं भी कामना करता हूँ कि महाविभव दीर्घायु हों, जिससे वे दीर्घ कालतक राज्य और प्रजाकी उचित सेवा कर सकें ।

अंग्रेजी (एस० एन० १२६३०) की फोटो - नकलसे ।

२६४. मूलचन्द अग्रवालके प्रश्नोंके उत्तर

[५ अगस्त, १९२७ ][२]

[प्र० : ] १. क्या आप प्रकृति, आत्मा और ईश्वर इन तीनोंके पृथक अस्तित्वमें विश्वास रखते हैं ?

[ उ० : ] विश्वास तो अवश्य रखता हूँ, लेकिन यह 'पृथक' मेरे गले नहीं उतरता, क्योंकि यद्यपि तीनोंके नाम अलग-अलग हैं, लेकिन वे तत्त्वतः एक ही हैं ।

२. आत्मा एक है अथवा अनेक ? यह उस परमात्मा, अर्थात् ईश्वरका ही एक अंश है अथवा इसका अलग अस्तित्व है ?

ऐसा जान पड़ता है कि आत्माएँ अनेक हैं, लेकिन इस दृश्यमान अनेकताके पीछे वास्तविक एकता छिपी हुई है।

३. यदि यह [ ईश्वरका ] एक अंश है तब तो उसे सम्पूर्ण ज्ञानसे युक्त होना चाहिए, सभी बुराइयोंसे रहित होना चाहिए और ईश्वरके सभी गुणोंसे विभूषित होना चाहिए -- ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार अग्नि, जल अथवा स्वर्णका कोई भी कण उस सम्पूर्णके सभी गुणोंसे सम्पन्न होता है, जिससे वह विलग हुआ है ।

तत्त्वतः तो आत्मा सभी बुराइयोंसे रहित है, लेकिन जिस प्रकार अपने स्रोतसे अलग हुई जलकी बूंद किसी गन्दे तालाब में जा मिलनेपर कुछ समय के लिए उस

  1. अनुमानतः यह भी उसी तारीखको लिखा गया था जिस तारीखको पिछला शीर्षक ।
  2. देखिए अगला शीर्षक ।