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पत्र : मूलचन्द अग्रवालको

पड़ोसियोंसे प्रभावित रहते हैं और फिर वे पड़ोसी अपने पड़ोसियोंसे और इसी तरह सम्बन्धोंका यह क्रम सबसे दूरस्थ गन्दी बूंदतक चला जाता है ।

७. आप और अन्य लोग 'स्वराज्य' की परिभाषा करते हुए कहते हैं कि स्वयंपर नियन्त्रण रखना, अपने-आपको सुधारना और अच्छा बनाना ही स्वराज्य है; और दूसरी ओर यह भी स्पष्ट ही है कि यदि व्यक्ति अपने-आपपर नियन्त्रण रखे, अपनेमें सुधार करे तो समाज अथवा राष्ट्र खुद-ब-खुद सुधर जायेगा, क्योंकि राष्ट्र व्यक्तियोंसे ही बना है ।

यह बात बिलकुल सही है कि आत्म-शासनका ही नाम स्वराज्य है ।

अंग्रेजी (जी० एन० ७६५ ) की फोटो नकलसे ।

२६५. पत्र : मूलचन्द अग्रवालको

बंगलोर
श्रावण शुक्ल ८ [५ अगस्त, १९२७][१]

भाई मुलचंदजी,

आपके प्रश्नोंका[२] उत्तर 'यं० इं०' में देनेकी आवश्यकता नहि समजता हुं । इससे कुछ और पूछना है तो पूछीये ।

आपका,
मोहनदास

जी० एन० ७६५ की फोटो नकलसे ।

  1. गांधीजी १९२७ में इस तारीखको बंगलोर में थे ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक ।