पड़ोसियोंसे प्रभावित रहते हैं और फिर वे पड़ोसी अपने पड़ोसियोंसे और इसी तरह सम्बन्धोंका यह क्रम सबसे दूरस्थ गन्दी बूंदतक चला जाता है ।
७. आप और अन्य लोग 'स्वराज्य' की परिभाषा करते हुए कहते हैं कि स्वयंपर नियन्त्रण रखना, अपने-आपको सुधारना और अच्छा बनाना ही स्वराज्य है; और दूसरी ओर यह भी स्पष्ट ही है कि यदि व्यक्ति अपने-आपपर नियन्त्रण रखे, अपनेमें सुधार करे तो समाज अथवा राष्ट्र खुद-ब-खुद सुधर जायेगा, क्योंकि राष्ट्र व्यक्तियोंसे ही बना है ।
यह बात बिलकुल सही है कि आत्म-शासनका ही नाम स्वराज्य है ।
अंग्रेजी (जी० एन० ७६५ ) की फोटो नकलसे ।
२६५. पत्र : मूलचन्द अग्रवालको
बंगलोर
श्रावण शुक्ल ८ [५ अगस्त, १९२७][१]
भाई मुलचंदजी,
आपके प्रश्नोंका[२] उत्तर 'यं० इं०' में देनेकी आवश्यकता नहि समजता हुं । इससे कुछ और पूछना है तो पूछीये ।
आपका,
मोहनदास
जी० एन० ७६५ की फोटो नकलसे ।