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२६६. पत्र : डब्ल्यू ° ल्यूतॉस्तॉवस्कीको

स्थायी पता : साबरमती आश्रम
६ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

अब मैं 'यंग इंडिया' मे[१] आपके प्रश्नों के उत्तर देने जा रहा हूँ, और यदि आप आगे और प्रश्न पूछना चाहते हों तो पूछनेमें संकोच न कीजिएगा ।

स्वास्थ्यकी रक्षा के लिए आपने जो तीन नियम बताये हैं, वे मुझे पसन्द आये । दो को तो मैं अच्छी तरह समझता हूँ। क्योंकि मैं खुद ही व्यर्थ चिन्ता करनेमें विश्वास नहीं करता और हमेशा सोनेके लिए समय निकालने की कोशिशमें रहता हूँ तथा मुझमें काफी हदतक लगभग चाहते ही सो जानेकी क्षमता भी है । उपवासकी बात भी मैं समझता हूँ, लेकिन में उस तरहसे उपवास नहीं करता, जिस तरहसे आप करते जान पड़ते हैं। आपका कहना है कि आप हर समुद्र यात्रापर जानेसे पहले १० या १५ दिन उपवास रखते हैं। इसे जरा साफ करके समझाने की जरूरत है । १० या १५ कहनेसे संख्याका स्पष्ट निर्देश नहीं मिलता। क्योंकि, जो व्यक्ति उपवास रखता है, उसके लिए १० दिन या १५ दिन एक ही बात नहीं है; ५ दिनकी कमी- बेशी उसके लिए बहुत मानी रखती है - कमसे कम मेरा तो यही अनुभव है । और यह उपवास क्या है ? क्या आप इस उपवास के दौरान पानीके अलावा और कुछ नहीं लेते, फल या दूध कुछ भी नहीं ? क्या आपने उपवाससे पहले और उपवासके बादका अपना वजन लिख रखा है? आपने कितनी बार ऐसे उपवास रखे हैं ? अब आपका वजन क्या है और 'हर समुद्र यात्रा 'से आपका क्या अभिप्राय है ? उसकी अवधि कितनी होती है ? उदाहरण के तौरपर, यदि आप एक दिनके लिए समुद्र यात्रा- पर जाते हैं, क्या तब भी आप उपवास रखते हैं? आप कहते हैं कि बहुत ज्यादा व्यस्त रहनेपर आप दोपहर के करीब केवल एक बार भोजन करते हैं। उस भोजन में क्या-क्या चीजें होती हैं ? और क्या आप सवेरे अथवा शामको पानीके अलावा और कोई पेय नहीं लेते, न कोई फल या दूध, कुछ नहीं लेते ? फिर आप आगे कहते हैं कि आप तभी उपवास करते हैं जब आपका वजन बहुत बढ़ जाता है । तो क्या आपके कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक समुद्र यात्रा से पहले आपका वजन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है ? और फिर आपका वजन बढ़ क्यों जाता है, जबकि स्पष्टतः जान तो यही पड़ता है कि आप अल्प भोजन करनेवाले व्यक्ति हैं ? और जब आप काम-काज में बहुत व्यस्त नहीं होते, उस समय आप दिन में कितनी बार भोजन करते हैं ?

  1. देखिए " अनेकतामें एकता ", ११-८-१९२७ ।