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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तुरन्त एक्सप्रेस पार्सलसे भेज दूँ; लेकिन मुझे भी कुछ मिलनेकी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। इन हिस्सोंमें जो कुछ भी मैं इकट्ठा कर पाऊँगा, वह सब तो यहींके विकास- कार्य में लगा देना होगा । इसलिए बंगालको आर्थिक सहायता देनेका केवल एक ही रास्ता है कि जब आप तैयार हों तब मैं बंगाल आऊँ और चन्दा इकट्ठा करने के लिए आपके साथ वहाँका दौरा करूँ ।

इस साल तो कुछ बन नहीं पायेगा; और यहाँका कार्यक्रम भी इस साल पूरा नहीं हो सकेगा, उसे अगले वर्ष लगभग मार्चके अन्ततक जारी रखना पड़ेगा। इस बीचमें रामदास के विवाह के सिलसिले में केवल पन्द्रह दिन आश्रममें रहूँगा । इसलिए मैं चाहता हूँ आप यह सोचकर चलना सीख लें कि आपको हमारा कारोबार, अब इस कामको कारोबार की संज्ञा दी जा सकती है, हमारे पास जितनी पूंजी है, उसीसे चलाना है। अतएव मैं चाहूँगा कि आप, क्षितीश बाबू और आपसे सम्बद्ध अन्य लोग परस्पर मिलकर विचार-विमर्श करें और एक ऐसा कार्यक्रम तैयार करें जिससे आप समस्त चिन्ता और दुविधासे मुक्त हो जायें। एक बार जब हम अपनी मर्यादाओंको जान लेंगे तो फिर चिन्ता करना छोड़ देंगे ।

आपके पत्रसे मुझे लगता है कि खास कलकत्ता में कोई कार्यालय नहीं होगा और सारा काम-काज सोदपुरसे ही चलाया जायेगा । कलकत्ता में एक भण्डार तो होगा, अथवा वह भी नहीं ? यदि आप यह सोचते हों कि कलकत्ता में कोई भण्डार नहीं होना चाहिए, अर्थात् अगर वहाँ कोई भण्डार आत्मनिर्भर नहीं हो सकता तो उसका न होना ही बेहतर है तो मुझे इसमें कुछ बुरा नहीं लगेगा ।

मेरा स्वास्थ्य फिलहाल भी ठीक चल रहा है । यदि बाढ़ के कारण गुजरात जानेका कोई ऐसा तकाजा नहीं आ गया जिसे टाला न जा सकता हो तो मैं इस महीनेकी २८ तारीखतक बंगलोर और उसके आसपास के इलाकों में ही रहूँगा । गुजरात जानेके लिए मुझपर दबाव तो डाला जा रहा है। लेकिन जबतक वल्लभभाईको जरूरत नहीं पड़ती तबतक मैं नहीं जाऊँगा। क्योंकि मैं जानता हूँ कि यदि मैं सक्रिय कार्य नहीं कर सकता तो मेरी उपस्थिति मात्र से कुछ बननेवाला नहीं है ।

आपका,

बाबू सतीशचन्द्र दासगुप्त

खादी प्रतिष्ठान

सोदपुर

अंग्रेजी (एस० एन० १९७९७ ) की माइक्रोफिल्मसे ।