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२७६. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मौनवार [८ अगस्त, १९२७ ][१]

बहनो,

आज तो मुझे थोड़ेमें काम चलाना होगा। ज्यादा लिखनेका समय नहीं है और लिखनेको भी कुछ नहीं है ।

तुमने मणिबनके लौटने के बारेमें पूछा था उसका जवाब लिखना मैं भूल ही जाता हूँ। वह बहुत करके यहाँसे २० तारीखके बाद रवाना होगी और पूना और बम्बई में एक-एक दिन रहने के बाद भड़ौंच जायेगी । उसके बाद वहाँ पहुँचेगी ।

आजकल आश्रम में हमारी कड़ी परीक्षा हो रही है । में चाहूँगा कि इसमें तुम सभी वीर सिद्ध होओ और वीर बनी रहो। हमारी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है । हम हर समय हृदय में रामका स्मरण करें तो हमारा बाल बाँका नहीं हो सकता ।

काकासाहबकी तबीयत यहाँ ठीक रहती है ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६६२) की फोटो नकलसे ।


२७७. पत्र : जे० बी० पेटिटको

कुमार पार्क,बंगलोर
९ अगस्त, १९२७

प्रिय श्री पेटिट,

मैं आपको एक बार फिर कष्ट दे रहा हूँ। आशा है, आप इसके लिए मुझे क्षमा करेंगे। सम्भवतः एन्ड्रयूजने आपको तार दिया है कि वे २० तारीखको वापस लौट रहे हैं। मैं देखता हूँ कि निगमने उन्हें एक मानपत्र भेंट करना तय किया है । 'यंग इंडिया' में अपने लेखमें[२] मैंने सुझाव दिया है कि इस अवसरपर व्यापक पैमानेपर सार्वजनिक प्रदर्शन होना चाहिए। कारण सिर्फ इतना ही नहीं है कि हम एन्ड्रयूजको जितना सम्मान दे सके, वे उस सबके योग्य पात्र हैं, बल्कि यह बात भी है कि यदि यह अभिनन्दन समारोह एक नीरस समारोहका रूप न लेकर जन- भावना के प्रबल प्रदर्शनका माध्यम बनता है तो दक्षिण आफ्रिकामें इसका जबरदस्त राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा और उससे श्री शास्त्रीके हाथ मजबूत होंगे।

  1. समयके अभाव के उल्लेखसे; देखिए " पत्र : मीराबहनको", ७-८-१९२७ भी ।
  2. देखिए " इस परमार्थ साधकका स्वागत करें”, ११-८-१९२७ ।