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२८१. पत्र : जामिनीभूषण मित्रको

कुमार पार्क,बंगलोर
९ अगस्त, १९२७

प्रिय जामिनी बाबू,

आपका पत्र मिला । आपने मुझमें विश्वास जाहिर किया है, इसकी मैं कद्र करता हूँ। लेकिन आपने जो रवैया अपनाया है वह गलत है । मैं ठीक होता तो भी अकेले कुछ कर सकने की सामर्थ्य मुझमें नहीं थी । लेकिन, यह देखते हुए कि मैं व्यवस्था के काम में हाथ नहीं बँटा सकता, मैं और भी सामर्थ्यहीन हूँ । इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं कि जितनी अच्छी तरह आप और सतीश बाबू एक-दूसरेको जानते हैं, उतनी अच्छी तरह में और आप एक-दूसरेको नहीं जानते । और जब आप उनको अपना दृष्टिकोण नहीं समझा सकते तो फिर में इसमें सहायता कैसे कर पाऊँगा ? लेकिन, अगर आप सोचते हों कि सतीश बाबूके मनमें आपके खिलाफ पूर्वग्रह है तो आपमें इतना आत्म-विश्वास तो होना ही चाहिए कि आप संघके मंत्री और सतीश बाबूके अलावा परिषद् के अन्य सदस्योंको इस बातकी प्रतीति करा सके कि उनके मन में आपके खिलाफ सचमुच पूर्वग्रह है। हाँ, मैं आपको इतना भरोसा दिला सकता हूँ कि आपको जो कुछ भी कहना हो, उसपर अव्वल तो श्री शंकरलाल बैंकर और फिर परिषद् के अन्य सदस्य मनमें सतीश बाबूका कोई खयाल किये बिना निष्पक्ष- भावसे विचार करेंगे। फिर डॉ० राय भी हैं। निस्सन्देह, वे जितनी सतीश बाबूकी सुनेंगे उतनी ही आपकी भी । क्योंकि मैं जानता हूँ कि उनके मनमें आपके लिए कितना स्नेह है। और अगर मेरी राय पूछें तो मैं तो यह भी कहूँगा कि सतीश बाबू जान-बूझकर आपके साथ कोई अन्याय नहीं करेंगे। बल्कि दरअसल तो उन्होंने आपके बारेमें मुझे एक ऐसा पत्र भी लिखा था, जिसमें आपके प्रति उनका स्नेह ही प्रकट होता था । इसलिए अगर आप सतीश बाबूसे मिलकर अपने-आपको इस बारे में आश्वस्त कर सकें कि उनके मनमें आपके प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी। आखिरकार आपके रास्ते में बाधा डालकर उन्हें अपना कोई स्वार्थ तो नहीं साधना है। उन्होंने सुख-सुविधा और रुतबेकी जिन्दगीको छोड़कर, अभाव, कष्ट और आत्म-विलोपनका जीवन स्वीकारा है । अगर मेरा कहना गलत हो तो आप बताइए । मुझे यह देखकर बड़ा दुःख होता है कि आत्म-त्यागी कार्यकर्त्ता भी एक साथ मिल-जुलकर उस उद्देश्यके लिए काम करनेमें नहीं लगे रह सकते जो सबको समान रूपसे प्रेय है ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जामिनीभूषण मित्र

खलीसपुर आश्रम
डाकघर बालीखोल

खलीसपुर, खुलना (बंगाल)

अंग्रेजी (एस० एन० १९७९८) की माइक्रोफिल्म से ।