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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया जाना है, उसके लिए कोई-न-कोई उपाय ढूंढ़ लेंगे, ऐसा में मानता हूँ। मैं चाहता हूँ कि यदि हमारी कमाईका धन शुद्ध हो तो उसका शुद्धतम उपयोग ही होना चाहिए । किन्तु यदि तुम चाहो तो मेरे इन शब्दोंको अर्थहीन प्रलाप भी मान सकते हो। हो सकता है मैंने बातको बिना समझे ही इतना कुछ लिख दिया हो । वल्लभभाई, जमनालालजी आदिके साथ सलाह-मशविरा करके जो कुछ करना चाहो सो तुम्हें करनेकी छूट है और जो कुछ तुम करोगे उसमें में अपनी सहमति प्रदान करूँगा । ऊपर प्रकट किये गये विचारोंको यदि तुम अपने मुद्रणालय के एक कार्यकर्त्ताका भावोच्छ्वास समझकर उन्हें जितना मान दे सको उतना दोगे तो मुझे पूरा सन्तोष हो जायेगा ।

तुम दो वर्षके लिए और बँध जाओगे किन्तु यह तो मुझे अच्छा लगेगा ।

अभी मैं तुम्हें जितना कुछ भेज रहा हूँ वह काकाको दिखाकर ही भेजा जा रहा है और आगे ऐसा ही होता रहेगा । जहाँ उनका विरोध न देखो वहाँ उनकी सहमति समझना ।

आज यदि मेरे पास मेरी शक्ति से अधिक और गम्भीर दूसरे काम न होते तो अभी और भी बहुत कुछ लिखता।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई

२८३. एक अपील

बंगलोर
१० अगस्त, १९२७

भाइयो,

यह अपील गुजराती भाषी हिन्दुओं, मुसलमानों, पारसियों और अगर कोई ईसाई हों तो उनसे की जा रही है। अन्य नागरिकोंको तो एक अन्य कोषमें अपने- अपने हिस्सेका दान देनेका अवसर मिलेगा, जिसके शीघ्र ही आरम्भ किये जानेकी मैं आशा कर रहा हूँ ।

यह अपील गुजरातकी भयंकर बाढ़के सिलसिले में की जा रही है। ऐसी बाढ़ वहाँ पहले कभी आई हो, ऐसा लोगोंको याद नहीं है। इसलिए में आशा करता हूँ कि सभी गुजराती भाई और बहनें इस कोषमें अपनी शक्ति-भर पूरा दान देंगे । दान में प्राप्त राशियाँ अहमदाबाद नगरपालिका और गुजरात प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्रीयुत वल्लभभाई पटेलको भेज दी जायेंगी ।