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पत्र : डॉ० मु० अ० अन्सारीको

है, और धर्मके नामपर की जानेवाली बेईमानी, फरेब, अनैतिकता और हिंसा से वह तंग आ चुका है। इसलिए, मेरा अनुरोध है कि आप अपने वक्तव्यको फाड़- कर फेंक दीजिए। उस विचारको आप अपनेतक ही सीमित रखिए, अपने चुनावको शोभा, गरिमा और कृतज्ञताके साथ स्वीकार कीजिए, और दुनियाको साफ-साफ बता दीजिए कि देशके सामने रखनेको आपके पास कोई अपना राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है; जहाँतक उसका सम्बन्ध है, आपका रवैया ठीक-ठीक एक न्यायाधीशके रवैयेके समान निष्पक्ष होगा और ऐसे सवालपर विचार करनेवाली बैठकोंमें आप मात्र एक सभाध्यक्षकी तरह कार्यवाहियों का संचालन करेंगे, व्यवस्था बनाये रखेंगे और बहुमत के निर्णयोंको लागू करेंगे; और आपने अपने चुनावको सिर्फ एक ही उद्देश्यसे स्वीकार किया है कि अपने कार्य-कालमें आप अपनी समस्त शक्ति लगाकर देशको आन्तरिक शान्ति प्राप्त करनेकी दिशामें ले जा सकें । कारण, एक मुसलमान और कट्टर राष्ट्र- वादी होने के नाते देशके प्रति आपका यह कर्तव्य है कि आप ऐसी आन्तरिक शान्ति स्थापित करनेके लिए, जो सभी पक्षोंके लिए सम्मानजनक हो, अपनी समस्त शक्ति और प्रतिभा लगाकर हजरत मुहम्मदके धर्मके गौरव और देशके सम्मानकी रक्षा करें । आपसे इससे अधिककी अपेक्षा कोई नहीं रखता । और अगर आप किसी और चीज में हाथ डालेंगे तो गोया आप अपने दायरे से बाहर जायेंगे ।

आपको तार नहीं दिया, क्योंकि सोचा कि इस तरह मैं गरीब कतैयोंके चन्द रुपये बचा दूंगा। तार वगैरह देनेका काम तो मैंने पण्डितजीके लिए छोड़ दिया है, क्योंकि तार विभागको संरक्षण देनेमें वे मुझसे कहीं अधिक समर्थ हैं। जब आपने उन्हें अपना डाकिया बनाया तो में भी इस सम्मान से क्यों वंचित रहूँ ? सो इस उत्तरको पहुँचानेका काम में उन्हींको सौंप रहा हूँ । और यह उत्तर पा लेने के बाद आप काँटोंके उस ताजको अस्वीकार करनेकी हिम्मत न कीजिएगा जो एक कृतज्ञ देश आपके सिरपर रख रहा है; इसी तरह आप अपने वक्तव्यको भी प्रकाशित करनेकी हिम्मत न कीजिएगा, चाहे उसमें व्यक्त विचार जितने भी महत्त्वपूर्ण क्यों न हों । अगर आप अपने बैठकखाने में जमा हुए, हुक्केका आनन्द ले रहे कुछ एक मित्रोंके सामने इन विचारोंको रखना चाहें, तो वैसा करके बेशक आप मजमेको मजेदार बनाइए । लेकिन, आपके विचार बैठकवानेकी चारदीवारीसे बाहर न जाने पायें ।

इस पत्र से आप पूरी तरह अंदाजा लगा सकते हैं कि मैं कितना स्वस्थ हूँ और कितना अस्वस्थ । स्वास्थ्य की निशानी इस पत्रकी लम्बाई और इसमें व्यक्त किये गये विचार हैं । और अस्वस्थताका अन्दाजा आप सिर्फ इसी बात से लगा सकते हैं कि न चाहते हुए भी इस पत्रको, जो एक पुराने मित्रके नाम लिखा बिलकुल व्यक्तिगत ढंगका स्नेह-पत्र है, मुझे बोलकर ही लिखवाना पड़ा ।

न आनेके लिए आपको माफी माँगनेकी क्या जरूरत है ? अगर मैं अपनेको वैसी नाजुक हालत में पाऊँगा तो आपको तार देनेमें तनिक भी नहीं हिचकूंगा, और २१ से ज्यादा दिनोंका उपवास लेनेपर भी जरूर तार भेजूंगा । और मैं जानता हूँ कि आप चाहे जिन कामोंमें लगे हों, आप सबको छोड़कर अपने बीमार दोस्तको देखने