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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भागे-भागे आयेंगे - भले ही वह सिर्फ उससे आखिरी बिदा लेने या उसकी उपवास करनेकी पागलपन भरी आदतको छुड़ाने के लिए ही क्यों न हो। अभी तो आप इसी तरह हजार रुपये रोजाना के हिसाब से बनाते जाइए, मगर एक शर्त है । वह यह कि अपनी इस अधर्मको कमाईका एक खासा प्रतिशत गरीब कतैयोंके लिए - चाहे सिर्फ प्रायश्चित्तके तौरपर ही क्यों न हो - अलग रखते जाइए ।

क्या मैं यह आशा करूँ कि उत्तर में एक तार भेज कर आप मुझे आश्वस्त करेंगे ?

हकीमजी से मिलिए तो कह दीजिए कि इस तरह मुझे बिल्कुल भुला देनेका नतीजा अच्छा नहीं होगा ।

हृदयसे आपका,

डॉ० मु० अ० अन्सारी

नं० १, दरियागंज

दिल्ली

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२८७०) की फोटो - नकलसे ।

२८५. पत्र : टी० आर० महादेव अय्यरको

कुमार पार्क,बंगलोर
१० अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

पत्र लिखने में देर हुई इसके लिए क्षमा करेंगे। डॉ० वरदराजुलु आनेवाले थे, इसलिए मैं जान-बूझकर एक-दो दिन रुका रहा। अब मैंने उनसे भी इस मामलेपर बातचीत कर ली है। उनका कहना है कि मलय प्रायद्वीप के लोग भी कमेटी के साथ हैं, और वे सचमुच ऐसा मानते हैं कि मुझे इस सम्बन्धमें कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उनके खयाल से कालान्तरमें उस सम्पत्तिका कब्जा कमेटीको फिरसे मिल जायेगा, यह निश्चित है। खुद मेरी राय तो यह है कि जहाँ जातिगत प्रति- बन्धोंको माननेवाले बहुत सारे लोग हों, वहाँ ऐसी सुविधा तो होनी ही चाहिए कि वे अपने बच्चोंको इस विकल्प के साथ कि उनके खान-पानकी अलग व्यवस्था की जायेगी, गुरुकुलमें भेज सकें। लेकिन, जिनके हाथमें सत्ता है, उनमें से अधिकांश लोग अगर इस विचारसे सहमत न हों और एक ऐसा कड़ा नियम बनाना चाहते हों जिसके अनुसार जातिगत प्रतिबन्धोंका पालन करनेवालोंको उस संस्थामें कोई स्थान न मिले तो आपको शोभनीय ढंगसे तत्काल उसकी सम्पत्तिका कब्जा छोड़ देना चाहिए। डॉ० वरदराजुलुका कहना है कि आपके पक्षमें कोई प्रभावशाली मत नहीं है । अगर यह सच हो तो मामलेको पंच-फैसलेके लिए सौंपना मुझे बेकार ही लगता है । अगर