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पत्र : एस० श्रीनिवास अय्यंगारको

आपका इरादा गुरुकुलकी सम्पत्तिका कब्जा तत्काल छोड़ देनेका हो तो अपने इस कदमका औचित्य सिद्ध करनेके लिए आप इस पत्रका उपयोग कर सकते हैं ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी० आर० महादेव अय्यर

नं० १, कृष्णमाचारी मार्ग
नुंगुमबक्कम

कैथिड्रिल डाकघर मद्रास

अंग्रेजी (एस० एन० १२९३६-ए) की माइक्रोफिल्मसे ।

२८६. पत्र : एस० श्रीनिवास अय्यंगारको

कुमार पार्क,बंगलोर
१० अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

कल हमारी एक अच्छी-सी, पारिवारिक गोष्ठी हुई थी । उसमें दो अब्राह्मण और तीन ब्राह्मण या आजकी भाषामें कहूँ तो दो असहयोगी और तीन सहयोगी थे । मैं तो हर हालत में अल्पमत में ही था। लेकिन आश्चर्य की बात कि सभी उप- स्थित लोग तमाम मतभेद और वर्ण-भेद भूल गये और एकमत होकर यह तय किया कि आपको श्री आर० के० षन्मुगम चेट्टीके नाम एक सुन्दर और छोटा-सा स्नेहपूर्ण पत्र लिखनेकी सलाह दी जाये, आपसे इसके लिए अनुरोध और आग्रह किया जाये । पत्रमें आप श्री चेट्टीको लिखें कि वे तत्काल आकर आपसे बातचीत करें। यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि हमें लगा कि ब्राह्मण, कांग्रेसका अध्यक्ष और स्वराज्यवादी दलका नेता होने के नाते आपकी स्थिति दलके बेचारे अब्राह्मण सदस्य से अच्छी है । हमें यह भी लगा - और ऐसा न समझें कि श्री चेट्टीकी रायसे प्रभावित होने के कारण यह लगा कि यद्यपि ऐसा कोई पत्र भेजना आपको किसी हदतक अटपटा लग सकता है, फिर भी आप हमारे निर्णयका किसी खास हिचकिचाहटके बिना सम्मान करेंगे। आपको इस बातचीतका मजमून बताने की जरूरत में नहीं समझता; क्योंकि वह तो आपको श्री सत्यमूर्ति से मालूम ही हो जायेगा, और फिर आप एक ऐसे आदमीसे, जो आपकी ही तरह रुग्ण है, किसी तरहका स्पष्टीकरण देने या बहस- मुबाहसे में पड़ने की अपेक्षा तो नहीं ही करेंगे। हाँ, अगर पंडितजी, जिनका स्वास्थ्य आजकल पहलेसे अच्छा है और जो बड़े उत्साहमें हैं, स्वराज्यवादी दलके प्रधान और कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्षके नाते सीधा आदेश जारी करनेके बजाय आपको घामलेको स्पष्ट करने और बातचीत करनेके लिए मजबूर करना चाहें तो भले ही वे वैसा करें। लेकिन जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मैं आपसे सिर्फ इतनी ही अपेक्षा रखूंगा कि आप