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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह स्नेहपूर्ण पत्र लिख देंगे, लेकिन अंग्रेज कूटनीतिज्ञोंकी तरह मनमें दुराव रखते हुए नहीं, बल्कि अपनी अच्छी से अच्छी शैली में ।

अबार में आपकी बोमारोका समाचार देते हुए एक छोटा-सा समाचार छपा था । उसे देखा तो मन चिन्तित हुआ; लेकिन, आपका तार पाकर आश्वस्त हुआ 1 आशा है, यह पत्र मिलनेतक आप इतने अच्छे हो चुके होंगे कि आपको जो थकाने- वाली यात्रा करनी पड़ेगी उसकी परेशानियोंको बरदाश्त कर सकें ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस० श्रीनिवास अय्यंगार

मइलापुर

मद्रास

अंग्रेजी (एस० एन० १४२१३) की फोटो नकलसे ।

२८७. पत्र : वालजी गो० देसाईको

बंगलोर
श्रावण सुदी १२ [ १० अगस्त, १९२७][१]

भाईश्री वालजी,

हमारे मण्डल में जिसने वेदोंका अध्ययन किया हो ऐसे तुम्हीं हो। आज तुम्हें 'वैदिक धर्म' पत्रिकाका एक अंक भेज रहा हूँ । उसे ध्यानपूर्वक पढ़ना और उसके विषय में अपना मत देना । क्या यह मत ठीक है कि वैदिक कालमें मांस भक्षण और खासकर गोमांसका भक्षण शिष्टानुमोदित आचार नहीं माना जाता था और यज्ञमें पशुओंका होम नहीं होता था ? और यदि ठीक है तो श्री वैद्य[२] आदि विद्वान् इसके विरुद्ध मत प्रकट करते हैं, उसके विषय में तुम्हारा क्या कहना है ?

दुग्धालय, चर्मालय आदिका विवरण तुम्हें नियमपूर्वक भेजते रहना चाहिए ऐसा मैं चाहता हूँ ।

आशा है तुम्हारी तबीयत ठीक होगी ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती (सी ० डब्ल्यू० ७३९३ ) की फोटो- नकलसे ।

सौजन्य : वालजीभाई देसाई

  1. सन् १९२७ में गांधीजी इस तारीख को बंगलोर में थे ।
  2. चिन्तामणि विनायक वैद्य, संस्कृतके विद्वान् और पुरातत्ववेत्ता ।