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दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीय

बात उस समयकी है जब वहाँ चेचक फैल गई थी और श्री एण्ड्रयूजने सफाईका काम अपने हाथमें लेकर उसमें सहायता देनेकी अपील की थी। श्रीयुत शास्त्री सर- कारके प्रतिनिधि हैं। फिर भी, अगर रायटरकी रिपोर्ट सही है तो उन्होंने गिरमिटिया भारतीयोंकी सफाई- विषयक आवश्यकता और सामाजिक कल्याणकी अपराधपूर्ण उपेक्षा- के लिए सरकार को भी नहीं बख्शा। गिरमिटिया भारतीयोंके बीच सफाईकी उपेक्षाके लिए वास्तव में तीन पक्ष जिम्मेदार हैं - भारत सरकार, गिरमिटियोंके मालिक और दक्षिण आफ्रिकी सरकार । यदि भारत सरकार इस सम्बन्धमें एक न्यूनतम स्तरका आग्रह रखती, यदि मालिकोंने अपने इन मजदूरोंको मनुष्य समझकर उनमें थोड़ी दिलचस्पी ली होती, और अगर स्थानीय सरकार गिरमिटिया भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकाके भावी नागरिकोंके रूपमें देखती तो वे लोग पाँच सालकी गिरमिटकी अवधिमें आधुनिक सफाई सम्बन्धी आदतें सीख लेते। कारण, पाँच सालकी गिरमिटकी अवधि में उन्हें बैरकों में रहनेवाले सिपाहियोंकी तरह रहना पड़ता था और सफाईके सम्बन्धमें जो भी उचित विनियम बनाये जाते, उनका पालन उनसे मजे में करवाया जा सकता था - ठीक उसी तरह जिस तरह उनसे श्रम-सम्बन्धी उन विनियमोंका पालन करवाया जाता था, जो बहुधा सफाई सम्बन्धी विनियमोंकी अपेक्षा कहीं अधिक सख्त और कठोर होते थे। लेकिन यह तो बीते दिनोंकी बात है । अब भारतीय, विदेशोंमें गिरमिटिया मजदूरोंके रूपमें नहीं जाते ।

प्रश्न यह है कि वर्तमान भारतीय अधिवासियोंको आदर्श नागरिक कैसे बनाया जाये । यदि सरकार तथा भारतीय अधिवासी परस्पर सहयोग करें तो हालत में सुधार कर सकना और ऐसा स्वस्थ भारतीय जनमत तैयार कर सकना असम्भव नहीं है जो किसी प्रकारकी अस्वच्छता और गन्दगीको बरदाश्त न करे । अब भारतीय अधिवासी सफाईका काम करनेवाला एक दल तैयार करके अपनी जिम्मेदारी निभायें; इस दलके लोग शौचालयों तथा गली-कूचोंको साफ करें तथा सफाईके नियमोंसे अनभिज्ञ लोगोंको सफाई के प्रारम्भिक नियमोंसे अवगत करायें, जैसा कि उन्होंने १८९७ में डर्बन में किया था । श्रीयुत शास्त्री अपने कार्य में तबतक सफल नहीं होंगे जबतक कि वहाँके भारतीय अधिवासी इच्छापूर्वक, समझदारी के साथ और पूरे हृदयसे उनकी मदद नहीं करेंगे। उन्हें कानूनके इस सुन्दर सिद्धान्तका पालन करना चाहिए कि जो लोग न्याय अथवा समानताकी माँग करने आयें वे अपना दामन साफ रखें। भारतीय अधिवासी शरीर, मन और आत्मासे स्वच्छ बनें और इस तरह उन्हें दक्षिण आफ्रिकामें इस राजदूतकी उपस्थिति के रूपमें जो स्वर्ण अवसर मिला है, उसका अधिकसे-अधिक लाभ उठायें, क्योंकि इस राजदूत में उनकी सेवा करनेकी क्षमता है और दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय भी उसकी बात बहुत सुनते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-८-१९२७