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२९१. गुजरातकी तबाही

गुजरात में भारी बाढ़ के कारण इस बार तो ऐसी भयंकर क्षति हुई है, जैसी पहले कभी नहीं हुई थी। मुझे जो थोड़ा-सा विवरण अखबारोंमें पढ़नेको मिला है उससे और वल्लभभाई पटेलके भेजे दो तारों तथा आश्रम से भेजे एक तारसे मुझे इस बातका एक मोटा-सा अन्दाजा ही मिला है कि बाढ़से कितनी भारी क्षति हुई है । बाढ़ का पूरा हाल जानने में मेरे साथ एक कठिनाई यह भी है कि मैं यह टिप्पणी मैसूर में एक ऐसे स्थान से लिख रहा हूँ जहाँ अखबार बहुत देरसे पहुँचते हैं। पूरा सम्पर्क स्थापित हो जानेपर कुल क्षति के बारेमें जो कुछ मालूम होगा, वह उत्तरदायी कार्य- कर्त्ताओं द्वारा लगाये गये नुकसानके अनुमानसे शायद बहुत ज्यादा होगा । बम्बई और गुजरात के दानी तथा धनाढ्य लोगोंने करुणासे प्रेरित होकर सहायता देने में उतनी ही तत्परता दिखाई है जितनी प्रचण्डता प्रकृतिने अपने विनाश-कार्य में दिखाई है। श्रीयुत वल्लभभाई पटेल पहले ही एक अपील जारी कर चुके हैं। मैं आशा करता हूँ कि इसके उत्तरमें लोग मुक्तहस्त होकर दान देंगे। मुझे एक व्यक्तिगत तारसे मालूम हुआ है कि श्री पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासने भी, जैसा कि वे स्वभाववश ऐसे अवसरोंपर किया ही करते हैं, सहायता कार्य शुरू कर दिया है। विपत्तिके ऐसे अवसरोंपर, जब मनुष्य के हृदयकी सारी संवेदनाएँ जाग उठती हैं, सहायता कार्य करनेके लिए बहुत सारे संगठन खड़े हो जाते हैं। उन सबका स्वागत किया जाना चाहिए। इतने विशाल क्षेत्रमें कोई एक संगठन सारे सहायता कार्यका निर्वाह कर सकनेकी आशा नहीं कर सकता । तथापि भिन्न-भिन्न सहायता-संगठनोंके लिए यह आवश्यक होगा कि वे परस्पर एक-दूसरेके साथ मिल-जुलकर काम करें, ताकि एक ही काम करनेमें एकाधिक संगठनोंकी शक्तिका अपव्यय न हो और एक-एक रुपयेका अधिकसे-अधिक सदुपयोग हो सके तथा गेहूँका एक-एक दाना सबसे ज्यादा जरूरतमन्दके लोगोंके हाथोंमें पहुँच सके। जिन लोगोंको भगवान् ने कुछ देनेकी सामर्थ्य दी है, उन्हें इस कहावतको यदि रखना चाहिए कि “जो जल्दी देता है वह दूना देता है । "

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-८-१९२७