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२९२. इस परमार्थ-साधकका स्वागत करें

किसी व्यक्तिने सी० एफ० एण्ड्रयूजको स्नेहपूर्वक दीनबन्धुकी उपाधिसे विभू- षित किया है। यह उपाधि निश्चय ही उनके योग्य है। जरूरतमन्द लोगोंके काम आना, उनका मित्र बनना उनके जीवनकी सबसे प्रबल आकांक्षा है, और वे जिस प्रकार सहायता करते हैं, उसमें यश और कीत्ति पानेका कोई भाव नहीं रहता। इसलिए यह उचित ही है कि भारत के प्रथम नगरने उनकी वापसीपर, अर्थात् इसी महीनेकी २० तारीखको, उन्हें मानपत्र भेंट करनेका निश्चय किया है। मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि मानपत्र अवसरके अनुकूल होगा । लेकिन श्री एन्ड्रयूजके प्रति अपने अत्यधिक स्नेहके कारण निगमके सदस्योंको यह नहीं भूलना चाहिए कि दीनबन्धु एन्ड्रयूज पैसेवाले आदमी नहीं हैं। यह बात लगभग अक्षरशः सत्य है कि वे सर्वथा अनिकेत हैं। उनके पास कोई अलमारी नहीं है, बहुमूल्य चीजोंको रखने के लिए कोई तिजोरी नहीं है, कोई घर नहीं है । उनके पास जो थोड़ी-बहुत चीजें हैं, उनकी देखभाल करनेके लिए भी उन्हें एक व्यक्तिकी जरूरत रहती है । वे अपनी कोई चीज खुद नहीं रखते । कोई भी व्यक्ति उनका बक्सा, उसमें पड़े सारे सामान सहित उड़ा ले जा सकता है । दक्षिण आफ्रिकामें पियर्सन और में हमेशा इस बातको लेकर परेशान रहते थे कि यह आदमी तो न कभी अपनी और न अपनी कही जा सकनेवाली चीजोंकी ही कोई परवाह करता है। इसलिए उन्हें कोई बहुमूल्य या किसी भी तरहकी मंजूषा भेंट करना उनके साथ अत्याचार करना होगा ।

लेकिन यदि निगम सचमुच पैसा खर्च करना चाहता हो तो उचित यह होगा कि वह उन्हें एक थैली भेंट करे, जिसे वे उस कामपर खर्च कर सकें जो उनके जीवनका उद्देश्य है । वे स्नेहकी कद्र करते हैं । लेकिन जब उन्हें धन्यवाद व सम्मान मिलता है। तब उन्हें बहुत अटपटा लगता है और वे सोचने लगते हैं कि यह सब धन्यवाद और सम्मान किसलिए | लेकिन वे चाहे जितना भी अटपटापन महसूस करें, उन्हें जो सम्मान दिया जाये वह कोई ऐसे-वैसे ढंगसे नहीं दिया जाना चाहिए। कारण यह है कि उन्होंने दक्षिण आफ्रिकामें जो शानदार काम किया है, उसके लिए तो वे उस सम्मान के पात्र हैं ही, लेकिन साथ ही उनको अच्छी तरह सम्मानित करके हम, दक्षिण आफ्रिकामें सद्भावनाका जो वातावरण बना है, उसका उत्तर भी दे सकेंगे और उनको उस तरहसे सम्मानित करना इस बातका द्योतक होगा कि उनके काम में उन्हें समस्त भारतीय जनमतका समर्थन प्राप्त था और वे भारतके उतने ही बड़े प्रतिनिधि थे, जितने बड़े प्रतिनिधिकी हैसियतसे श्रीयुत शास्त्री दक्षिण आफ्रिका में काम कर रहे हैं। [ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-८-१९२७