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दृढ़ताकी कसौटी


इस उद्धरणका शायद सबसे प्रभावपूर्ण अंश वह है, जिसमें सच्चे और झूठे विज्ञान तथा कलाका भेद स्पष्ट किया गया है। इस बातसे कौन इनकार कर सकता है कि आज विज्ञान और कलाके नामपर जो कुछ हो रहा है, उसमें से अधिकांश ऐसा है जो आत्माको ऊपर उठानेके बदले उसका हनन करता है और हममें जो अच्छे- से-अच्छे गुण हैं, उन्हें उभाड़ने के बजाय हमारी निम्नतम वासनाओंको जगाता है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-८-१९२७

२९६. दृढ़ताकी कसौटी

अखिल भारतीय चरखा संघके सदस्योंकी सूचीका अध्ययन करनेसे एक दुःखद तथ्य सामने आया है। प्रथम श्रेणीके १,९८० सदस्योंमें से १,२५५ सदस्योंमें अपने हिस्सेका सूत नियमित रूपसे देते रहने के वादेका पालन करनेमें दृढ़ताका अभाव पाया गया है । कोई यह न सोचे कि अगर अपने काते सुतके बजाय कुछ थोड़ा-सा पैसा देनेकी बात होती तो परिणाम इससे विशेष भिन्न होता। चाहे जिस कारणसे हो, लोग स्वेच्छा से अंगीकार किये ऐसे कर्त्तव्योंके पालनकी परवाह नहीं करते जिनको पूरा न करनेपर उन्हें तत्काल कोई नुकसान होनेका भय नहीं रहता । किन्तु जब- तक किसी राष्ट्रमें ऐसे पुरुष और स्त्रियाँ काफी बड़ी संख्यामें नहीं होतीं जो स्वेच्छासे अंगीकार किये अपने ऐसे दायित्वोंको भी पूरा करें जिनको पूरा न करनेपर उन्हें किसी महसूस होने लायक सजाका डर न हो तबतक वह राष्ट्र तेजीसे प्रगति नहीं कर सकता । जिस संगठनकी सदस्यता खो देनेसे आर्थिक या कोई अन्य भौतिक हानि नहीं होती, ऐसे संगठन की सदस्यताके छिन जानेकी लोग परवाह नहीं करते, और कुछ तो यह भी सोचते हैं कि ऐसी संस्थाके सदस्य रहकर वे उसपर कृपा करते हैं और उस संस्थाको उनकी इस कृपाको अपनी एक बहुमूल्य थाती समझना चाहिए। लेकिन, अगर कोई सदस्य अखिल भारतीय चरखा संघकी बाबत भी कुछ ऐसे खयाल रखते हों तो मैं उन्हें सचेत कर देता हूँ । संघका सदस्य होना एक बड़ा सौभाग्य समझना चाहिए, क्योंकि यहाँ तो वे बिना किसी पारिश्रमिकके और विवेकपूर्वक किये गये आधे घंटे के ऐसे श्रमकी बदौलत, जिसे कोई भी साधारण पुरुष, स्त्री या बच्चा कर सकता है, सुत चन्देके जबरदस्त संयुक्त प्रभाव के साझेदार बनते हैं । इसलिए देर और चूक करने- वाले सदस्योंसे मैं अनुरोध करूँगा कि वे अपने हिस्सेका सूत भेजनेमें समयकी उतनी ही ज्यादा पाबन्दी बरतें जितनी कि वे रेलगाड़ी पकड़ने या अपने-अपने कार्यालय में जाने में बरतेंगे। वे याद रखें कि कताईका अपना जो महत्त्व है वह तो है ही, साथ ही यह कोई कम महत्त्वकी बात नहीं है कि सदस्यगण चरखा चलाते हुए प्रतिदिन नियमित रूपसे करोड़ों दीन-दुखी जनोंकी दशाका स्मरण करते हैं और एकसार तथा मजबूत सूत कातने के लिए प्रतिदिन एकाग्रचित्त होकर बैठते हैं; और फिर उस सूतमें खुद उनकी भी उतनी ही भलाई छिपी हुई है जितनी कि भारत के शेष ३० करोड़