२९८. अनुकरणीय
श्रीमती अन्नपूर्णाबाई घरेने, जिन्होंने पिछले चातुर्मास्यमें अखिल भारतीय चरखा संघको एक लाख गज सूत दिया था, इस बार फिर गत वर्षकी तरह ही प्रतिज्ञा ली है, और वे उसे पूरा करने के लिए नियमित रूपसे चरखा चला रही हैं । इस प्रतिज्ञाका मतलब है चार महीनेतक प्रतिदिन ३३३ गज सूत कातना । अगर कताईमें उनकी गति औसत है तो उन्हें अपने इस यज्ञके लिए प्रतिदिन तीन घंटे देने पड़ेंगे, तभी वे इतनी मात्रामें अच्छा सूत कात सकेंगी। क्या दूसरी बहनें भी इस उदाहरणका अनुकरण करेंगी ? यह तो है ही कि इस यज्ञके लिए चरखेमें विश्वास और उन करोड़ों अपरिचित मानवोंके प्रति, प्रेमका भाव होना आवश्यक है ।
[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-८-१९२७
२९९. पत्र : एम० अब्दुल गनीको
स्थायी पता : बंगलोर
११ अगस्त, १९२७
प्रिय मित्र,
पत्रके लिए धन्यवाद । जब आपको 'रंगीला रसूल' के प्रकाशन के बारेमें मालूम हुआ होगा, शायद उससे पहले ही मैंने उसके खिलाफ 'यंग इंडिया' में बहुत कड़े शब्दों में अपने विचार व्यक्त किये थे । इस बातको ३ वर्ष हो चुके हैं। मौजूदा विवाद में मैंने कोई हिस्सा नहीं लिया है, क्योंकि 'रंगीला रसूल' के मामलेके फैसलेपर जो भारी आन्दोलन खड़ा हो गया है, उसे में ठीक नहीं समझता । न्यायाधीशपर किये गये प्रहारको मैं एक दुःखद बात मानता हूँ । सम्भव है कि उससे निर्णयकी भूल हुई हो, लेकिन उसके फैसलेसे ऐसा कुछ प्रकट नहीं होता कि उसके मनमें कोई पूर्वाग्रह था। मुझे मालूम हुआ है कि उसने पुस्तिकाकी तीव्र भर्त्सना की। लेकिन उसका खयाल था कि खुद कानून ऐसा नहीं है कि पुस्तिकाके लेखकके खिलाफ कोई कार्रवाई की जा सके। कानून में परिवर्तन कराने के लिए जो आन्दोलन चल रहा है, वह ठीक है, लेकिन अगर कानून कारगर नहीं पाया जाता तो चाहे आन्दोलन किया जाये या नहीं, उसमें परिवर्तन तो होना ही है ।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
कुर्नूल
अंग्रेजी (एस० एन० १२३८६ -ए) की माइक्रोफिल्मसे ।