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३०२. पत्र : टी० परमेश्वर अय्यरको

स्थायी पता: बंगलोर
११ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

आपके उस तिथिरहित पत्रका उत्तर देने के लिए समय निकालनेकी मैं बहुत कोशिश कर रहा था, जिसके साथ आपने भद्रावती और कृष्णराज सागरसे सम्बन्धित कागजात भेजे हैं। मगर उत्तर दे नहीं पाया था कि आपका दूसरा पत्र आ पहुँचा, जिसके साथ आपने और भी कतरनें भेजी हैं। लेकिन मैं यह नहीं चाहता था । में तो यह चाहता था कि यदि आप समय निकाल सकें तो मुझे असन्दिग्ध तथ्य- आँकड़ोंसे युक्त ऐसी संक्षिप्त टिप्पणी लिख भेजें, जिसे मुझ जैसा व्यस्त व्यक्ति भी आसानीसे पढ़ सके और तद्नुसार जैसा ठीक लगे वैसा कर सके।[१] मगर आपने मुझे जो कागजात भेजे हैं, यदि मैं उन्हें पढ़नेका प्रयत्न करूँ तो फिर बीमार हो जाऊँ ।

आपने अपने सबसे पहले पत्रमें मुझसे जो लेख पढ़ने को कहा था, उसे मैं पढ़ गया हूँ। इसमें कही बातें मनको जँची नहीं, और मुझे यह लेख तटस्थ भावसे विशुद्ध तर्कपूर्ण शैलीमें लिखा गया नहीं लगा ।

श्री शास्त्रीके पत्रसे आपने जो उद्धरण दिया है, वह मुझे असंगत जान पड़ता है । जहाँ उन्होंने आपको इस बात के लिए बधाई दी है कि अवकाश ग्रहण करनेके बाद भी राज्य के कल्याण में आपकी दिलचस्पी बराबर बनी हुई है, वहाँ भद्रावती- योजनाके विषय में अपना मत बिलकुल नहीं बताया है ।

मैं इस महीनेकी २१ तारीख से पहले बंगलोर वापस नहीं आ पाऊँगा । यदि मुझे थोड़ा-सा समय मिल सके तो आपसे व्यक्तिगत रूपसे मिलकर मुझे बड़ी खुशी होगी । अनुचित न मानें तो कहूँ कि मेरे वापस आनेपर आप मुझसे मिलनेकी कोशिश करें। जिस समय आप मिलने आयें, उस समय यदि में व्यस्त न हुआ तो मुझे आपसे मिलकर निस्सन्देह बड़ी खुशी होगी ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी० परमेश्वर अय्यर

अवकाशप्राप्त न्यायाधीश
'ह्वाइट हाउस
चामराजपेट

बंगलोर सिटी

अंग्रेजी (एस० एन० १२६३१ ) की माइक्रोफिल्म से ।

  1. देखिए " पत्र : टी० परमशिव अय्यर को ", २९-७-१९२७। हालकि दोनों पत्रों में पानेवालेका नाम भिन्न प्रकारसे लिखा गया है किन्तु ये एक ही व्यक्तिको लिखे गये होंगे।