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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही अर्जुनके शोकका निवारण किया था। सामान्यतः हमारा व्यवहार इससे उलटा होता है । कोई मरता है तो हम रोते हैं, हमारा घर जल जाता है तो हमें दुःख होता है । और अभी बाढ़ आई उस समय तो हम पागल ही बन गये । किन्तु मरना, आग लगना या बाढ़का आना आदि सारी घटनाएँ अपरिहार्य हैं । यदि हम उनका शोक करते रहें तो इस तरह कितने दिन कट सकते हैं। इस वाक्यका यह अर्थ नहीं है कि हमें अपना हृदय कठोर बना लेना चाहिए । जहाँ आग बुझाई जा सकती है, बाढ़ से हुई हानिकी पूर्ति की जा सकती है, मरणासन्न व्यक्तिको बचाया जा सकता है वहाँ निश्चय ही हमें अपनी शक्तिके अनुसार उपाय करने चाहिए। किन्तु इन सारी घटनाओंका हम अपने ऊपर और कोई प्रभाव न पड़ने दें ।

अब तो मुझे यही समझना होगा कि इस बार तुम यहाँ नहीं आ सकते और यह ठीक ही है किन्तु जब तुम्हें सुविधा हो और तुम चाहो तब आना । में जहाँ भी होऊँ तुम वहीं आ जाना ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी।
सौजन्य : नारायण देसाई

३०६. पत्र : वसुमती पण्डितको

दावनगिरि
श्रावण सुदी १३ [ ११ अगस्त, १९२७ ][१]

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र कल ही मिल पाया - यानी सात दिन में । चि० कुसुमके सम्बन्धमें तुमने जानकारी भेजी यह ठीक हुआ । इस दिशामें और अधिक जो भी मालूम कर सको मुझे बताना । मैंने कुसुमको पत्र लिखा है ।[२] उसका उत्तर अभीतक नहीं आया । बाढ़ के समय तुम सब लोगोंकी कड़ी परीक्षा हुई होगी। इस बार यह सुनकर प्रसन्नता हुई कि तुम्हारी तबीयत ठीक है । उसे ठीक ही रखना ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू ० ५८६ )
सौजन्य : वसुमती पण्डित

  1. गांधीजी उस तारीखको दावनगिरिमें थे ।
  2. देखिए " पत्र : कुसुमबहन देसाईको”, २९-७-१९२७ ।