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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अगर हमारे दंगाई तत्त्वोंपर हम तथाकथित नेताओंका कोई वश नहीं है तो हमारा समझौता खोखला और बेकार ही माना जाना चाहिए । जब हम सर्वसाधारण- पर नियन्त्रण हासिल कर लें, तभी हमें सच्चे स्वराज्यकी बात सोचनी चाहिए। हमें खुद भी सही आचरण करना सीखना चाहिए। समझौतेका दिल्लीपर कोई असर नहीं हुआ, और हमारे लिए यह घोर लज्जाका विषय है कि बकरीदके अवसरपर शान्तिको रक्षाका काम सरकारको करना पड़ा है ।

मेरा अहिंसाका सिद्धान्त एक बहुत ही सक्रिय शक्ति है । इसमें कायरता, यहाँतक कि कमजोरीके लिए भी कोई स्थान नहीं है। किसी हिंसा प्रिय व्यक्तिके कभी अहिंसक बन पाने की आशा तो की जा सकती है, लेकिन कायर के बारेमें हम ऐसी कोई आशा नहीं रख सकते । इसलिए मैंने इन पृष्ठों में एकाधिक बार कहा है कि यदि हमें कष्ट सहनकी शक्ति अर्थात् अहिंसा के बलपर अपनी-अपनी स्त्रियों और पूजा-स्थलोंकी रक्षा करना न आता हो तो अगर हम मर्द हैं तो हमें कमसे कम लड़कर तो इनकी रक्षा करना आना ही चाहिए। हम प्रतिद्वंद्वी पक्षोंके बीच शान्ति कायम रखने अथवा अपने भाइयोंसे ही अपनी माँ-बहनोंकी रक्षा करनेके लिए सर- कारसे कहें अथवा उससे ऐसा करनेकी अपेक्षा रखें, यह पुंसत्वहीनताकी बात है । और जबतक हम इस तरह पुंसत्वहीन हैं तबतक स्वराज्यकी आशा करना बेकार है । सुव्यवस्थित समाजमें तो सरकार सिर्फ आरक्षणका ही काम (पुलिस वर्क) करती है । लेकिन, हालमें दिल्ली या लाहौरमें जो विस्तृत तैयारियाँ की गईं वे आरक्षणके कामके लिए ही नहीं की गई थीं। हममें मतभेद तो बराबर रहेंगे। लेकिन हमें सभी मतभेदोंको, चाहे वे धार्मिक हों या अन्य प्रकारके, पंच-फैसलेके द्वारा सुलझाना सीखना चाहिए । अगर हम स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हों तो हमें सरकारके समक्ष एक संयुक्त मोर्चे के रूपमें उपस्थित हो सकना चाहिए और दुनियाको यह दिखा सकना चाहिए कि हममें अपने व्यवहारका ठीक नियमन करनेकी क्षमता है ।

लेकिन, अगर हमारे पास ऐसे नेता न हों जिन्हें हम विवेकपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय देनेवाले पंचोंकी तरह चुन सकें या अगर हम इतने उद्दण्ड और बर्बर हों कि अपने ही चुने पंचोंके निर्णय करनेतक धीरज न रख सकें और उनके निर्णयोंका पालन न कर सकें तो हमें आपस में ही तबतक जी भरकर लड़ लेना चाहिए जबतक कि हम उससे थककर होशमें न आ जायें। बेशक, सरकार तो, हम चाहे या न चाहें , बराबर हस्तक्षेप करेगी, चाहे वह सार्वजनिक शान्ति बनाये रखने के लिए हो अथवा उसकी अपनी सुरक्षाके लिए। लेकिन अगर परस्पर-विरोधी गुट साहस और निर्भीकता के साथ सरकारसे सुरक्षा या सहायता माँगने से इनकार कर दें तो ऐसे झगड़ोंसे हममें कोई खास कमजोरी नहीं आयेगी । ऐसी लड़ाईमें किसी हत्यारेकी रक्षा क्यों की जानी चाहिए। वह आगे बढ़कर शूलीको गलेसे लगाये । पूजा स्थलोंको ध्वस्त करनेवाले लोग साहसके साथ आगे आयें और कहें कि धर्मकी खातिर यह काम हमने किया है और अब अगर तुम हमें सजा देना चाहते हो तो दो । राह चलते निरीह व्यक्तियोंकी हत्या करनेवाले लोग खुद ही पुलिसके पास जायें और कहें