पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३०८. पत्र : बाल कालेलकरको

१२ अगस्त, १९२७

काकासाहबका संन्यास लेना तुम्हें अच्छा नहीं लगता इतना कहना काफी नहीं है। जब मैंने तुम्हें यह लिखा था कि पुत्रकी आयु १६ वर्षकी हो जानेपर वह अपने पिताका मित्र हो जाता है, तब मेरा यह आशय भी था कि अब तुममें स्व- तन्त्रतापूर्वक विचार करनेकी बुद्धि आ गई है । और जो व्यक्ति स्वतन्त्रतापूर्वक विचार करता है उसे अपने मत के समर्थन में स्वयं अपनेको और दूसरोंको सबल कारण दे सकना चाहिए। मुझे अमुक चीज अच्छी लगती है और अमुक अच्छी नहीं लगती - इसका कारण उसे देना चाहिए। बचपन से ही ऐसी शक्तिका विकास करके कुछ लोग महापुरुष के पदतक पहुँचे हैं। उदाहरण के लिए महर्षि दयानन्द, चैतन्य, रामकृष्ण परमहंस और अन्य ऐतिहासिक व्यक्ति । अभी हम हिन्दू धर्म क्या कहता है इसका विचार न करके स्वतन्त्र रीति से संन्यास के प्रश्नपर विचार करें । संन्यास एक मानसिक स्थिति है और इस मानसिक स्थितिको हम मनुष्यके आचरणमें देख सकते हैं । संन्यासकी मानसिक स्थितिको प्राप्त किये बिना यदि कोई मनुष्य संन्यासीके आच- रणका अनुकरण करे तो उसका यह आचरण संन्यासकी श्रेणी में नहीं आ सकता । इस तरह देखें तो हम सबको और कम या अधिक परिमाणमें सारी दुनियाको संन्यासी- का जीवन बिताना चाहिए। और जो लोग ऐसा जीवन नहीं बिताते वे त्रिविध ताप भोगते हैं । संन्यास यानी भोगका त्याग । सम्पूर्ण त्याग यानी सम्पूर्ण संन्यास । गृहस्थ व्यक्तिको भी कुछ-न-कुछ संयम तो सर्वदा पालना ही पड़ता है। जो ऐसे संयमका पालन नहीं करता वह दुःखमें पड़ता है, पृथ्वी के लिए भाररूप बनता है और अनेक प्रकारके रोगों का शिकार बनता है । इस परिस्थिति से हम यह अनुमान कर सकते हैं कि ज्यों-ज्यों हमारे जीवनकी उन्नति हो त्यों-त्यों उसमें संयम यानी संन्यासका अंश बढ़ना चाहिए। तथा प्रत्येक मनुष्यका यह कर्त्तव्य है कि वह यथाशक्ति अपनी जीवन-चर्यामें संयमकी वृद्धि करता रहे। यदि तुम ऊपरकी इस दलीलको स्वीकार करो कि संयम एक श्रेयस्कर वस्तु है तो तुम्हें यह मानना पड़ेगा कि जिस वस्तुसे मनुष्यका श्रेय-साधन होता हो, उसे करनेमें पतिको अपनी पत्नीकी या पत्नीको अपने पतिकी सम्मति लेनेकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। दाम्पत्यको सुगन्धित रखनेका एक ही उपाय है और वह यह कि भोग-विलास में दोनोंकी सहमति होनी चाहिए। किन्तु जो भोगके त्यागमें आगे बढ़ना चाहता है उसे आगे बढ़नेका अधिकार होना चाहिए। यदि ऐसा न हो तो जो लोग गृहस्थका जीवन बिता रहे हैं उनकी उन्नति नहीं हो सकेगी और यदि उनकी उन्नति नहीं हो सकेगी तो सारे समाजकी उन्नति रुक जायेगी। इस विवेचन के बाद क्या अब तुम यह स्वीकार नहीं करोगे कि काका- साहबको उक्त प्रकारका संन्यास लेनेका अधिकार है ? काकासाहबके इस संन्यास से