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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वस्तुको संजीवित करना चाह रहे हैं जो नष्ट हो चुकी है और आश्रमका गुरुवर्ग इस दिशा में प्रयत्नशील है। समझदार विद्यार्थियोंको उदार मनसे उन्हें इस प्रयत्न में मदद करनी चाहिए और जहाँ-जहाँ वे माता-पिता के अभावको पूरा न कर पाते हों वहाँ-वहाँ तुम्हें धीरज रखकर सहनशीलताका विकास करना चाहिए। यदि तुम लोगों में से कुछ थोड़े विद्यार्थी ही ऐसा करेंगे तो हम आश्रमको ज्यादा शुद्ध बना सकेंगे । तुमने जिस निःसंकोच भावसे मुझे अपना पहला पत्र लिखा है उसी निस्संकोच भावसे हमेशा लिखते रहना। बड़ोंके सामने अपना मन बिना किसी दुराव-छिपावके स्पष्टतापूर्वक खोलना ही सच्ची विनय है । हम अपनी भाषा में मर्यादाका पालन करें और उसे मीठी बनायें किन्तु मनमें आये हुए विचारोंको मर्यादित करने और छिपाने की चेष्टामें हम गम्भीर अपराधके भागी होंगे। उसमें शिष्टतां तो हो ही नहीं सकती ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३०९. भाषण : दावनगिरिको सार्वजनिक सभामें[१]

१२ अगस्त, १९२७

गांधीजीने कहा कि खादी आधुनिक उद्योगवादसे बरबाद हुए गाँवोंका अंशतः पुनरुद्वार कर सकेगी और जहाँ रुईकी मंडियाँ हैं, ऐसे स्थानोंके खुशहाल व्यापारियोंका यह कर्त्तव्य है कि वे कताईको इस देशमें फिरसे प्रतिष्ठित करने में सहायता दें। खादी- आन्दोलनका उद्देश्य संसारकी तमाम अच्छी चीजोंका समान वितरण है। जहाँ खादी धार्मिक अर्थव्यवस्थाका प्रतीक है, वहाँ उद्योगवाद राक्षसी अर्थव्यवस्थाका । कारण, उद्योगवाद चन्द लोगों के हाथोंमें धनके सिमट आनेकी प्रवृत्तिको प्रश्रय देता है ।

इस राक्षसी अर्थव्यवस्थाको हमें बरबाद करनेसे रोकने के लिए, में अपनी सारी शक्ति लगा दूंगा। मैं चाहता हूँ कि आप हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, सब लोग इस काम में मुझे सहायता दें।

इसके बाद उन्होंने गो-रक्षाकी चर्चा करते हुए कहा कि दावनगिरिके लोगोंकी इस काम में गहरी रुचि है और इसके लिए यहाँ प्राणि-दया संघ नामक एक समर्थ संगठन भी है। उन्होंने कहा कि सुसंचालित दुग्धशालाएँ और मरे हुए पशुओंके चमड़ेको कमानेके लिए अच्छे चर्मशोधक कारखाने भारतमें सच्ची गो-रक्षाके लिए नितान्त आवश्यक हैं।

  1. दावनगिरिकी नगरपालिका और वहाँके नागरिकों द्वारा भेंट किये गये मानपत्रोंके संयुक्त उत्तर में ।