पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३११. पत्र : ज० प्र० भणसालीको

शनिवार, १३ अगस्त, १९२७

भाईश्री भणसाली,

तुम्हारा पत्र मिला । मेरा तार मिल गया होगा। भाई छगनलाल जोशीने मुझे पत्र लिखा है। उससे मालूम हुआ कि मेरा पत्र पाकर तुम क्षुब्ध और विचलित हुए। तुमने मुझे पहले क्या लिखा था, उसे याद करो। मेरी आलोचना और रायको तुमने खुशी-खुशी स्वीकार किया था और मैंने अपनी टीका तुम्हारे उपवासके दिनोंमें नहीं लिख भेजी यह बात तुम्हें खटकी थी । मीराबहन को लिखे अपने पत्र में तुमने लिखा है कि तुम्हें तो संन्यास और समाधिके द्वारा ईश्वरका साक्षात्कार करना है । " घोर परिग्रह अथवा विपत्तियोंके भयसे भी वह स्थिरता नष्ट नहीं होती " - ऐसी तुम्हारी स्थिति होनी चाहिए। तुम्हारे ऊपर कोई क्रोध करे, तुम्हें अज्ञानी, मूर्ख कह जाये तो भी तुम्हें तो उसपर दया ही आनी चाहिए। किन्तु यह तो मैं जो कहना चाहता हूँ उसकी प्रस्तावना हुई ।

लिखना तो मुझे यह है कि इस प्रश्नका हल निकालनेकी जो कोशिश हो रही है, उसे शान्त चित्तसे होने देना । ऐसा समझना कि कार्यवाहक मण्डल भी धमकी दृष्टिसे ही उसका निर्णय करना चाहता है। यदि तुम्हारे सोचे हुए उपवाससे वे सहमत न हों तो उसका यह अर्थ कदापि नहीं कि तुम्हें आश्रम छोड़ना ही होगा । कार्यवाहक मण्डल क्या निर्णय करेगा यह तो मैं नहीं कह सकता। मुझे इस बातकी कोई इच्छा नहीं है कि मैं जो चाहता हूँ वही निर्णय वे करें। तुम्हारे पत्र में मण्डलको भेज रहा हूँ । तुम जल्दीमें कुछ भी निर्णय न करना ।

मीरा बहनको तुमने लिखा है कि तुम्हारा पत्र अल्टीमेटम' नहीं था । महा- देवने तो मुझे यह पत्र देते समय यही बताया था। पढ़नेपर मुझे भी वह 'अल्टीमेटम ' सा ही लगा । 'अल्टीमेटम' का कुछ ज्यादा अर्थ मत करना । अल्टीमेटम यानी दृढ़ निश्चय । देखा जाये तो उसमें तुमने मेरी आज्ञा नहीं आशीर्वाद माँगा है । पर अब तुमने मुझसे मिलनेके बाद निर्णय करनेका जो निश्चय किया है उसपर दृढ़ रहना । मैं मानता हूँ कि इस समय यह पत्र-व्यवहार तो हम इस प्रश्नके धार्मिक पहलूका निर्णय करनेकी खातिर ही कर रहे हैं ।[१]

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस० एन० १२९६२) की फोटो नकलसे ।

३४-२४

  1. ज० प्र० भणसालीको २६ और २७ जुलाई, १९२६ तथा मीरा बहनको २७ जुलाई, १९२६ को लिखे पत्र भी देखिए ।