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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वहाँसे हटाकर अन्यत्र बसाया जाये । लेकिन यह काम किसी एक आदमीके करनेका नहीं है। उसमें समाजके अग्रगण्य और समझदार स्त्री-पुरुषोंकी सलाह और सक्रिय सेवाकी आवश्यकता है । उसमें सरकारका भी शुद्ध सहयोग होना चाहिए ।

मेरी प्रार्थना तो वल्लभभाईके और इसी प्रकारके अन्य सेवा दलोंसे है । इससे अधिक तो इस समय मेरी सामर्थ्य से बाहर है ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १४-८-१९२७

३१४. पत्र : मीराबहनको

शिमोगा
१४ अगस्त, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारा पत्र मिला । आज रविवार है और यह पत्र में शिमोगा नामक एक ऐसे स्थान से लिख रहा हूँ, जो रास्तेसे जरा हटकर है। अभी चार रातें यहीं बितानी पड़ेंगी, क्योंकि आसपास के इलाकोंका दौरा करना है । यह पत्र तुम्हें मिलनेतक में यहाँसे प्रस्थान कर चुका होऊँगा । आशा है, खोये पत्रका रहस्य अब तुम्हारी समझमें आ गया होगा । और अब में भी जान गया हूँ कि यदि में सोमवासरीय पत्र रविवार- की रात में मौन लेनेके बाद ही लिख दूँ तब भी मुझे उसपर ऐसा लिख देना चाहिए कि यह सोमवासरीय पत्र है। मगर मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे पत्रोंके बारेमें इस तरह चिन्ता करना छोड़ दो। मिल जायें तो ठीक, लेकिन न भी मिलें तो ठीक ही समझना चाहिए; क्योंकि मैं तुम्हें यह आश्वासन तो दे ही चुका हूँ कि अगर मेरे साथ कुछ अघटनीय घट जायेगा, तो तुम्हें निश्चय ही उसकी सूचना तारसे मिल जायेगी । और इस बातकी चिन्ता भी तुम्हें क्यों होनी चाहिए कि ऐसी गड़बड़ी हो जानेसे तुम्हें सम्बन्धित पत्रमें लिखी बातें नहीं मालूम हो पायेंगी या देरसे मालूम हो पायेंगी? उसमें अगर कोई महत्त्वकी बात हुई तो उसे तो में फिरसे याद करके लिख ही सकता हूँ ।

स्पष्ट है कि गुजरात में सहायताका काम बड़े व्यवस्थित ढंगसे चल रहा है । यह तो है ही कि तुम वहाँ होतीं तो उस काम में प्राणपणसे जुट गई होतीं, लेकिन जो लोग अपने-अपने कर्त्तव्य स्थलपर, वे आपद्ग्रस्त क्षेत्रसे चाहे जितने दूर हों, डटे हुए हैं और परिस्थितिके प्रति पूरी तरह सतर्क हैं, उन्हें भी इस काम में प्राणपणसे ही जुटा हुआ मानना चाहिए ।

तुमने विनोबाके बारेमें जो कुछ लिखा है, सो उन्हींके योग्य है । लेकिन इस मामले में मेरी सहानुभूति तो अपने आग्रहपर डटे रूढ़िवादियोंके साथ ही है । मासिक धर्मके दौरान अस्पृश्यता बरतनेकी यह पुरानी प्रथा ऐसी नहीं है, जिसमें हानियाँ-ही- हानियाँ हों और यह कोरा वहम और अन्धविश्वास तो नहीं ही है । और ऐसे मामलोंमें