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पत्र : मीराबहनको

विवाहित और अविवाहित स्त्रियोंमें भेद बरतना कठिन है । इस प्रतिबन्धको मैंने पुरुषकी वासनापर एक अंकुशकी तरह देखा है। रजस्वला स्त्रीको किसी अँधेरे-गन्दे कमरेमें बन्द करके रखना, उसे पहनने आदिके लिए फटे-पुराने कपड़े देना बहुत भयंकर और अमानवीय चीज है और इसका कोई औचित्य नहीं हो सकता। लेकिन, मासिक धर्मके दौरान स्त्रियोंको बिलकुल अलग-थलग रखनेकी भावनामें आमूल परिवर्तन करनेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए। इसलिए, में चाहता हूँ कि तुम इस विषयके दूसरे पहलूको भी देखो और मोघेजी-जैसे लोगोंके रवैयेको सिर्फ किसी तरह बरदाश्त करो, इतना ही नहीं बल्कि जिस तरह तुम चाहोगी कि इस सम्बन्धमें तुम्हारे विरोधी रवैयेको लोग सम्मानकी दृष्टिसे देखें, उसी तरह तुम भी उनके रवैयेको सम्मानकी दृष्टिसे देखो । इसलिए मैं आशा करता हूँ कि विनोबा इस मामलेमें पूरी सावधानी और विनयके साथ काम कर रहे हैं और उन्होंने आश्रमके रूढ़िवादी लोगोंका समर्थन केवल अपने स्नेहके बलपर ही नहीं, बल्कि उन्हें सचमुच अपने रवैयेका कायल करके प्राप्त किया होगा । यदि उन लोगोंने स्वेच्छासे विरोध करना छोड़ दिया हो, तो भी मेरी सलाह है कि तुम मासिक धर्मके दौरान अपनी मर्जीसे ही कुछ संयम बरतो । अगर चाहो तो तुम यह पत्र विनोबाको भी पढ़वा सकती हो, ताकि वे मेरी दलीलको समझ सकें । याद रखो कि मेरा निजी मत तो वही है जो तुम्हारा है। लेकिन, मेरा कहना सिर्फ यह है कि सहिष्णुता दिखाई जाये तो बुद्धिपूर्वक और विरोधीके दृष्टिकोणके प्रति सम्मानका भाव रखते हुए, और यह भी याद रखो कि जब तुम किसीके दृष्टिकोणके प्रति ऐसी सहिष्णुता बरतती हो तो अपने-आपको दबाती नहीं हो । जहाँ किसी कोरे अन्धविश्वासको बरदाश्त करना पड़ता है, वहीं अपनेको दबानेकी बात आती है और वहाँ यह आवश्यक भी हो जाता है। ऐसी अस्पृश्यताको बरदाश्त करना तुम्हारे लिए 'असह्य' नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत, तुम्हें इस प्रतिबन्धको या तो लाचारी मानकर ओढ़ लेना चाहिए या फिर इस विचारको अपने मनसे दूर रखकर कि रूढ़िवादियोंका दृष्टिकोण हर तरहसे अनुचित है, राजी-खुशी और शोभनीय ढंगसे स्वीकार कर लेना चाहिए।

और अब तुम्हारे भावी कार्यके बारेमें: तुमने अपने-आपको अशिक्षित कहा है । तुम्हारी इस बातको मैं स्वीकार कर लेता हूँ । लेकिन मैं नहीं चाहता कि तुम हमेशा अशिक्षित बनी रहो। अशिक्षाको दूर करनेके लिए [जमकर मेहनत करनेका समय तुम्हारे लिए अभी बीत नहीं गया है। अगर तुम इस स्थितिको दूर करनेके लिए अपने अन्दर रुचि जगा लो तो में इतनेसे सन्तुष्ट हो जाऊँगा । और इस उद्देश्य से तुम चाहो तो एक अच्छी-सी व्याकरणकी पुस्तक लेकर उसका पूरा अभ्यास कर जाओ। ऐसा ही गणित के विषय में भी करो। तुम्हें गणितकी किसी बहुत ही सरल पुस्तकसे शुरू करना चाहिए । अगर तुम ऐसा सोचती हो कि अपने स्वभाव और मानसिक रुझानकी दृष्टिसे तुम दोनों या इनमें से किसी एकके लिए अनुपयुक्त हो तो फिर में कुछ नहीं कहूँगा । और वैसे भी, में यह तो कभी नहीं चाहूँगा कि यह जो दो महीने की अवधि है और जो बड़ी तेजीसे बीतती चली जा रही है, उसमें तुम्हारे