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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सिरका बोझ और बढ़ाऊँ । लेकिन मैं चाहूँगा कि बादमें अगर तुम यह सब मनोरंजनके तौरपर कर सको तो अवश्य शुरू कर दो ।

रसोईघरके काम से शुरुआत करना बेशक बहुत अच्छा रहेगा । उससे और कुछ नहीं तो इतना तो होगा ही कि तुम्हें अपने मिजाजपर काबू रखनेकी आदत पड़ेगी और हर तरहके लोगोंके साथ निभाना सीख सकोगी । व्यवहारमें तो हमने देखा है कि रसोईघर के काममें आदमीके धीरजकी सबसे ज्यादा कसोटी होती है ।

मैं जानता हूँ कि तुम अपने मनमें मेरे लिए ढेर सारा स्नेह लेकर यहाँ आई हो । यह न होता तो दूसरी तमाम चीजें बिलकुल बेकार होतीं, और जब यह है तो जो कुछ भी जरूरी है, सब आसानीसे हो जायेगा। लेकिन, अभी मैं तुम्हारे आगे कामके बारेमें कुछ सोचना नहीं चाहता। जब तुम वहाँ अपना काम पूरा कर लोगी, तब मैं जानता हूँ कि तुम्हें और मुझे दोनोंको आगेका रास्ता काफी साफ दिखाई देने लगेगा ।

भणसालीने तुम्हें दिये जवाबकी नकल मुझे भेजी है । पत्र व्यवहार जारी रखो । सस्नेह,

बापू

[ पुनश्च : ]

आज रविवार है। सोमवासरीय पत्र अलगसे लिखूंगा ।

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू ० ५२६०) से ।
सौजन्य : मीराबहन

३१५. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

१४ अगस्त, १९२७

प्रिय चार्ली,

तो आखिर तुम दक्षिण आफ्रिकामें अपना जादू दिखाकर वापस आ गये। मुझे उम्मीद है, तुम अच्छी सेहत लेकर भी लौटे होगे ।

यह पत्र में मैसूरके एक ऐसे स्थानसे लिख रहा हूँ, जो रास्ते से जरा हटकर है । साथमें अपना कार्यक्रम भेज रहा हूँ । तुम शायद तुरन्त ही मेरे पास आना चाहो । यदि तुम २१ को बम्बईसे रवाना होओ तो गुंटकलके रास्ते २३ की सुबह बंगलोर पहुँच सकते हो, और फिर २४, २५ और २६ को मुझे जिन-जिन स्थानोंमें रहना है, उनमें से कहीं भी आकर मुझे पकड़ सकते हो; क्योंकि ये स्थान बंगलोरसे बहुत दूर नहीं हैं ।

गुजरात के बारेमें तुम्हारा तार मिला था । यह तो आत्म-शुद्धिके लिए ईश्वर- प्रदत्त एक सुन्दर अवसर प्रतीत होता है, क्योंकि मुझे जिस किसी सूत्रसे जो भी