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पत्र : ए० आई० काजीको

मालूम हुआ है, सबसे यही प्रकट हुआ है कि बाढ़ग्रस्त इलाकेके लोगोंने अवसर के अनुकूल साहस और दृढ़ताका परिचय दिया है। लेकिन इसका स्थायी प्रभाव क्या होगा, इसके बारेमें अभी कुछ नहीं कहा जा सकता ।

शेष मिलनेपर |

बा, महादेव, राजगोपालाचारी, गंगाधरराव, देवदास, काका आदि हम सबकी ओरसे स्नेहपूर्वक,

मोहन

अंग्रेजी (एस० एन० १२३७१) की फोटो नकलसे ।

३१६. पत्र : ए० आई० काजीको

स्थायी पता : साबरमती आश्रम
१४ अगस्त, १९२७


प्रिय काजी,

उपयोगी सूचनाओं और जानकारीसे भरे आपके पत्र मुझे मिलते रहते हैं । यह मेरे लिए बड़ी प्रसन्नताकी बात है कि आप दक्षिण आफ्रिकामें श्री शास्त्रीकी प्रवृत्तियोंसे इतने ज्यादा खुश हैं। मैं तो यही उम्मीद रखता हूँ कि भारतीय समाज उनकी सेवाओंका अच्छेसे अच्छा उपयोग करेगा। मैं जानता हूँ कि समाजको अपनी शिकायतोंको दूर करानेका फिर ऐसा कोई मौका नहीं मिलेगा ।

सर्वोच्च न्यायालय के नेटाल प्रादेशिक विभागके निर्णयसे[१] मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। विक्रेताके परवाने और उत्पादनकर्त्ताके परवाने में हमेशासे भेद किया जाता रहा है । उदाहरण के लिए, किसी बढ़ईको अपने बनाये उपस्कर (फर्नीचर) आदि विक्रेता परवानेके बिना भी बेखटके बेच सकना चाहिए । यदि उसके लिए कोई परवाना लेना अपेक्षित भी हो तो वह शिल्पकारका परवाना ही होगा ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री० ए० आई० काजी

दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेस

१७५, ग्रे स्ट्रीट, डर्बन ( नेटाल)

अंग्रेजी (एस० एन० १२३७२) की फोटो नकलसे ।

  1. इस निर्णयका सम्बन्ध एक पठानके मामलेसे था जो एम्पायर फरनीचर मैन्युफेक्चरिंग कं० के नामसे अपना धन्धा करता था। उसके परवानेका नवीनीकरण करनेसे इनकार कर दिया गया था। अपील करनेपर उक्त न्यायालयने यह निर्णय दिया था कि उसे केवल फुटकर या थोकवन्द व्यापारियोंके मामलोंमें ही हस्तक्षेपका अधिकार है और चूँकि प्रस्तुत मामला उत्पादनकर्ताके परवानेसे सम्बन्धित है इसलिए वह हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।