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पत्र : एस० गणेशन्को

लेकिन तुम्हारी यह शंका ठीक ही है कि किसी गरीबको वैसी कीमती और खूबसूरत ट्रे रखना तो शायद शोभा नहीं देगा जैसी ट्रे का वर्णन तुमने किया है। तुमने मेरे पत्रको बहुत लापरवाहीसे पढ़ा है और इस तरह अनजाने ही उसका बिलकुल उलटा अर्थ लगा लिया है। मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि बस इसी एक चीजके बलपर, अर्थात् सिर्फ एक वस्त्र पहनकर में गरीबोंके साथ अपना तादात्म्य स्थापित कर सकता हूँ, जबकि तुम्हारे अनुसार मैंने यही बात कही है। अलबत्ता, मैं यह जरूर कहता हूँ कि उस छोटी-सी चीजका भी अपना एक महत्त्व है। ऐसा कदम उठाने के पीछे जो तर्क हो सकता है, उसे समझनेकी अपेक्षा अब शायद तुमसे नहीं करनी चाहिए। लेकिन इस समय ऐसे ही कारणोंसे जब मैंने डर्बनमें अपनी पोशाकमें परिवर्तन किया था, तब तो तुम उस परिवर्तनका मर्म अच्छी तरह समझ गईं थीं। मैं श्री शास्त्रीसे तुम्हारी मुलाकात के वर्णनकी राह देखूंगा ।

में तुम्हारी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि अगर हमें सचमुच कुछ कर दिखाना हो तो हमारे समाज में शिक्षा आदिके मामलेमें स्त्रियोंको भी पुरुषोंकी जैसी सुविधाएँ सुलभ होनी चाहिए। तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि यहाँ आश्रम में हर उम्रकी ४० से अधिक स्त्रियाँ हैं। छोटी-छोटी बालिकाएँ हैं सो अलग। उनके लिए प्रतिदिन एक अलग कक्षा लगाई जाती है । मेरे विचारसे तो वे बहुत अच्छी प्रगति कर रही हैं। आश्रम में उन्हें अधिकसे-अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त है ।

हृदयसे तुम्हारा,

संलग्न
अंग्रेजी (एस० एन० १२३७३) की फोटो - नकलसे ।

३१८. पत्र : एस० गणेशन्को

स्थायी पता: बंगलोर
१४ अगस्त, १९२७

प्रिय गणेशन्,

आपके दो पत्र मिले । कृष्णदास अभी बिहारमें है । मैं उसे लिख रहा हूँ कि वह आपको संशोधित पाण्डुलिपि[१] भेज दे। यह जानकर खुशी हुई कि आपने अपनी कठिनाइयोंपर पार पा लिया है ।

आपकी प्रकाशन-योजनासे सम्बन्धित घोषणा मैंने देखी। पढ़ने में तो यह बिलकुल ठीक ही जान पड़ती है ।

मैं आशा करता हूँ कि आप किसी भी हालत में किसी तरहके जोखिम के काम में हाथ नहीं डालेंगे। हर काम बहुत ही सोच-विचार कर करना चाहिए ।

  1. दक्षिण आफ्रिका सत्याग्रहका इतिहासका अंग्रेजी अनुवाद इन दिनों एस० गणेशन् द्वारा प्रकाशित । 'करेन्ट थॉट' पत्रिकामें निकल रहा था। अभिप्राय उसीके संशोधित अनुवादसे है।