पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४१५

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३२०. पत्र : ए० ए० पॉलको

शिमोगा
१४ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और संलग्न कागजात मिले। मैं यह पत्र आपको शिमोगासे लिख रहा हूँ, लेकिन यदि आप उत्तर देना चाहें तो बंगलोर के पतेपर भेज सकते हैं। इस महीनेकी २९ तारीखतक मेरा सदर मुकाम बंगलोर ही रहेगा ।

विभिन्न धर्मावलम्बियोंके बीच भाईचारेका भाव उत्पन्न करनेकी आपकी योजना मुझे पसन्द आई। इसे में इतनी अच्छी तरहसे नहीं पढ़ पाया हूँ कि मैं इसके सम्बन्धमें कोई उपयोगी बात कह सकूँ। लेकिन पहली बार पढ़ने पर तो मुझे यह अच्छी लगी ।

जब मैं मद्रास आऊँगा तब श्रीयुत राजगोपालाचारी मुझे जितना भी अवकाश दे सकेंगे, वह सब आपके लिए सुरक्षित रहेगा और उसमें हम दोनों आपकी योजना- पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। आप भी तबतक इस दिशामें कुछ प्रगति कर चुके होंगे, क्योंकि आपकी समितिकी बैठक तो २२ तारीखको हो ही चुकेगी।

इस पत्रको पूरा ही करवाया था कि मुझे आपका इसी ११ तारीखका लिखा पत्र मिला । मुझे यह जानकर खुशी हुई कि पूनामें विभिन्न देशोंके लोगोंके बीच भाई- चारेकी भावनाकी वृद्धि करनेवाली संस्थाकी स्थापनाकी दिशामें काफी काम हो चुका है। प्रोफेसर वाडियाको में पत्रोंके द्वारा अच्छी तरहसे जानता हूँ ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १९८०१) की फोटो - नकलसे ।

३२१. पत्र : एम० एफ० खानको

स्थायी पता : बंगलोर
१४ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

अब समय पानेपर मैंने आपका संवाद “ बालक क्या-कुछ कर सकते हैं" पढ़ लिया है । इससे मालूम होता है कि आपका हृदय कहाँ बसता है । लेकिन यद्यपि मैं अपने- आपको कलाका पारखी नहीं मानता, फिर भी एक पत्रकारके नाते मैं कह सकता हूँ कि वार्त्तालाप पढ़ने में दिलचस्प नहीं लगता। इसमें कथा-तत्त्वका अभाव है ।