पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३२४. भाषण : शिमोगा में[१]

१४ अगस्त, १९२७

चरखेके प्रति लोगों में सहानुभूति है, विश्वास है और वातावरण भी अनुकूल है । अब मैं यह चाहता हूँ कि इस विश्वासको कार्य रूप देनेके लिए कताई कलाके विशेषज्ञ लोग सामने आयें। मैं अनुभवसे जानता हूँ कि जहाँ विश्वासके साथ-साथ ज्ञान और कार्य दक्षता नहीं रहती, वहाँ विश्वास जल्दी ही भाप बनकर उड़ जाता है और बहुत शानदार शुरुआतका भी कोई नतीजा नहीं निकलता। मैं चाहता हूँ कि आप वकील और व्यवसायी लोग अपने जिस विशेष ज्ञान और कौशलका उपयोग अपने-अपने धन्धोंके लिए करते हैं, उसका लाभ आप उस नये कामको भी दें, जिसे आपकी सहानुभूति प्राप्त है । आप कताईके आर्थिक पहलूका अध्ययन करें और इस कलापर पूरा अधिकार प्राप्त कर लें तथा वस्त्रोत्पादन से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों और प्रक्रियाओंके विशेषज्ञोंकी सहायतासे एक ऐसा संगठन बनायें जो उस शानदार प्रशासन-तन्त्रके समान सक्षम हो जिसकी रचना इस राज्यने की है ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-८-१९२७

३२५. पत्र : मीराबहनको

सोमवार, १५ अगस्त, १९२७

चि० मीरा,

तो आखिरकार तुम्हें खोया हुआ पत्र मिल ही गया। बेचारा महादेव ![२] तुम्हें अपनी आँखें खराब नहीं करनी चाहिए - हिन्दी सीखने के लिए भी नहीं । तुम्हें सबसे ज्यादा जरूरत इस बातकी है कि तुम हिन्दीमें बातचीत कर सको । ऐसा करते हुए तुम अपना एक निजी शब्दकोष बना डालो अथवा छपे हुए कोषमें व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ लिखती जाओ। लेकिन, निश्चय ही, तुम्हारी आँखोंके बारेमें लन्दन के विशेषज्ञकी रायको में अन्तिम नहीं मानता। अक्सर ऐसा होता है कि सीधे- सादे उपचारोंकी ओर विशेषज्ञका ध्यान नहीं जा पाता और वह इस निष्कर्षपर पहुँच जाता है कि चूंकि लेन्समें फेरबदल करनेसे काम नहीं चलेगा, इसलिए दूसरा कोई उपाय ही नहीं है । लेकिन, खैर अभी तो इसे कुछ दिन और टाला ही जा

  1. स्थानीय नगरपालिका और नागरिकोंकी ओरसे दिये गये मानपत्रोंके उत्तरमें
  2. महादेव देसाईने भूलसे पत्र पर वर्षाके बजाय साबरमतीका पता लिख दिया था ।